AutorRTJD जून 2021 - Incognita Island

    आज ये सुंदर और अद्भुत दिखने वाला हमारा प्यारा देश भारत पहले ऐसा नहीं दिखता था और ना ही  ये एशिया महाद्वीप का कोई भाग था । तो ये यहां कैस...


 

 आज ये सुंदर और अद्भुत दिखने वाला हमारा प्यारा देश भारत पहले ऐसा नहीं दिखता था और ना ही  ये एशिया महाद्वीप का कोई भाग था । तो ये यहां कैसे एशिया का हिस्सा बना और उससे पहले ये कहा था ? आज मैं आपको इन्ही सब प्रश्नों को लेकर एक बार फिर हाजिर हूं आपकी सेवा में तो चलिए जानते है भारत देश का जन्म कैसे हुआ ? ये बात 20 से 25 करोड़ वर्ष पूर्व की है जब इस धरती पर नाही कोई उपखंड या खंड नही होते थे तब एक ही महाखंड (super continent ) हुआ करता था जिसे पेंजिया ( pangaea ) नाम दिया गया ।

दोस्तों कुदरत का नियम है कि हर वस्तु गतिशील है चाहे वो निर्जीव हो या सजीव वो इनडायरेक्ट रूप से गति करती है । उसी तरह हमारी धरती की प्लेट्स निरंतर खिसकती रहती है मगर ये प्रक्रिया इतनी मंद होती है की हमें इसका बदलाव हजारों या करोड़ों वर्षो में नजर आता है । पेंजीया महाखण्ड में एक ही महासागर हुआ करता था पेथलासा ( pathalasa )  । बादमें पैंजिया (pangaea) सुपर कांटिनेट का विभाजन हुआ और दो खंडों का निर्माण हुआ लार्सिया ( laursia ) और गोंडवाना ( gondwana ) और इस बात का पता

लगाया महान भौगालिक वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेजनर ( Alfred Wegener 1880 -1930 ) ने । इसी समय सरीसर्प जेसे स्तनधारियों का विकास हुआ था । इन दो खंडों के विभाजन में पहले खंड लॉर्सिया में एशिया , उत्तर अमेरिका और यूरोप महाद्वीपो का निर्माण हुआ और दूसरे खंड गोंडवाना में दक्षिण अमेरिका , अफ्रीका , ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिक जेसे महाद्वीपों का जन्म हुआ । इन खंडों में आंतरिक और। इन खंडों के बिच प्रतिकर्षण बल ( Repulsive force ) लागू होता है जिस वजह से ये लगातार एक दूसरे से दूर हटत जा रहे है । ये खिचाव की प्रक्रिया आज भी हो रही है मगर इसकी धीरता के कारण हमें महसूस नहीं होती है । इस प्रक्रिया को सन् 1596 में अब्राहम ओर्टेलियस ने

महादिपीय विस्थापन सिद्धांत ( Continet Drift Theory ) का नाम दिया था । अफ्रीका और भारत देश एक ही खंड में आते थे उस वक्त मगर फिर इनमे भी विस्थापन हुआ और ये एक दूसरे से अलग हो गए । भारत का वह टुकड़ा गोंडवाना खण्ड से निकल कर लॉर्सिया खंड के एशिया महाद्वीप की सीमा पर धस गया क्योंकि नियम के अनुसार जब कोई दो वस्तु की आपस में भिड़त होती है तो भारी वस्तु नीचे धस जाती है और हल्की वस्तु उपर उठ जाती है । यही भारत देश के साथ भी हुआ गोंडवाना खंड से आए भारत का दूसरा टुकड़ा पहले वाले भारत के टुकड़े के नीचे धस गया ।  जिस वजह से भारत का पहला वाला हिस्सा उपर उठ गया और जिस कारण हिमालय जेसे विशाल पहाड़ो का निर्माण हो गया । और यह दो धरातल का संगम कई बार भूकंप जेसी परिस्थितियां पैदा कर देता है । हालाकि भारत के संगम से कोई विशाल भूकंप की उत्पति तो नही हुई है मगर समय समय पर भूकंप के झटके महसूस होते रहते है । और इस तरह भारत की भोगलिक सुंदरता में चार चांद लग गए हिमालय के निर्माण से मगर ये प्लेट्स का खिसकना जारी है इसलिए दिनों दिन हिमालय के माउंट एवरेस्ट ( Mount

Everest )
जेसे पहाड़ों की ऊंचाई बढ़ती ही जा रही है । महान वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर ने ये भी कहा था की ये  खंड(  continents ) आज भी एक दूसरे में फिट बैठते है , अगर इनको एक साथ पुनः जोड़ दिया जाए तो पैंजिया ( Panagea ) का निर्माण फिर से हो सकता है । अल्फ्रेड ने जब ये सिद्धांत दुनिया का सामने बताया तो उनको नकारा भी दिया और उन्हें अपनी नौकरी से हाथ भी धोना पड़ा । लोगो ने इनको पागल करार दिया जिस कारण अल्फ्रेड ने अपने सिद्धांत को सही साबित करने के लिए दुनिया जगत में भ्रमण करके कई पदार्थ

एकत्रित किए । जो  सिद्ध करते है की दुनिया के अनेक कोनो में एक जेसे ही पदार्थो उपस्थित है और ये सब continent drift theory को सही साबित करते हैं । 1930 में अवलोकन करते करते ये महान यक्तित्व कही गायब हो गए । उनके मरने के कुछ वर्षो में उनके परीक्षणों और सिद्धांत को दुनिया ने अपना लिया । 

  आसमान में हम जब भी नजर उठाके देखते है तो एक ही एहसास होता है आखिर कितना बड़ा है ये ब्रह्माण्ड ?  और क्या इस पूरे ब्रह्माण्ड में हम अकेले म...

 आसमान में हम जब भी नजर उठाके देखते है तो एक ही एहसास होता है आखिर कितना बड़ा है ये ब्रह्माण्ड ?  और क्या इस पूरे ब्रह्माण्ड में हम अकेले मात्र हैं ? । इसी तरह के सोच से परहेज खयाल आते हैं जब भी हम आसमान का रुख करते है तो हमें सिवाय उत्सुकता और प्रश्नों के आलावा कुछ नही हासिल होता है । ऐसा इसलिए क्योंकि हम इसकी खूबसूरती पर कम और इसके वजूद पर ज्यादा ध्यान देते है । आज भी वैज्ञानिकों की कई संस्था इन विषयों पर निरीक्षण कर रही है । आसमान शब्द बोलने में अति सहज और साधारण लगता है मगर इसका अर्थ और परिभाषा उतनी ही जटिल और संरचनात्मक है । आसमान की वास्तविक भव्यता तो रात के अंधेरी में पता चलती है जब सूरज की छवि धरती के उस पार होती है । देखा जाय तो रात और दिन का होना हमारे जीवन की एक साधारण दिनचर्या में आते है मगर इसके पीछे छुपा रहस्य जानकर हैरानी ही होती है । वास्तव में रात पूरी धरती पर न होकर पृथ्वी के आधे भाग पर होती है दूसरे भाग पर दिन होता है ये परिक्रम बदलता रहता है जिसे शाश्वत समय रेखा कहते है । परन्त धरती पर कुछ ऐसी भी जगहें है जहा ये दोनों सिद्धांत लागू नहीं होते है जेसे नार्वे , जापान और दक्षिणी गोलार्ध । क्या आप जानते है हम तारो को दिन में ही क्यों देख पाते है ? इसका भी एक कारण है , यूं तो हर चीज के पीछे एक कारण जरूर होता है । दिन में सूरज की किरणे हमारी आंखों की रेटीना को परिवर्तित कर देती है जिस कारण हम तारो की मौजदूगी मालूम नही पड़ती है । दूसरे शब्दों में कहें तो हमे तारे तभी नजर आते है जब उनके पीछे सूरज का प्रकाश पड़ता है । क्या आपको पता है हम जिस जगह से जिन तारो को देख पाते है क्या उन्ही तारो को हम दूसरी जगह से भी देख पाएंगे ? इसका जवाब इतना साधारण भी नही है ये हमारे सर्फेस और समय पर निर्भर करता है  । इसलिए धरातल और मौसम का भी इसके उपर प्रभाव पड़ता है । आइए भरता के कुछ तारामंडल के बारे में जान लेते है की ये कैसे दिखाई देते है । तारामंडल तारो का एक समूह होता है जो एक आकृति का निर्माण करता है । हा कई तारामंडल में गृह और धुलकन के एस्टीरियड भी शामिल होते है ।  तारामंडल आसमान का अलंकार है या यू कहे तारामंडल ही आसमान है । जब भी रात की खूबसूरती की बाते की जाती है तो पहले जिक्र आसमान का होता है इससे पता चलता है की हमारे जीवन में आसमान की अहमियत कितनी ज्यादा है  भारत के कुछ जाने पहचानें तारामंडल -         

  1. वृहत सप्तर्षि 
      सप्तपुरुष या उर्सा मेजर कहलाने वाला ये तारामंडल सात तारो का        एक समूह है जो प्रश्न वाचक चिन्ह के जैसा दिखाई देता है इसे चारपाई    और हासिया भी कह जाता है । ये प्रमुख तारामंडल की सूची में आता      है ।
  1.  हल का आकार  इसमें भी सात तारो का गुच्छा है और पहले वाले तारामंडल से काफी      ज्यादा मिलता जुलता भी है इसको हल के आकार का दिखाई देने के      कारण इसको इसी नाम से जाना जाता है । ये उत्तर दक्षिणी भाग में        देखा जा सकता है बरसात मौसम में ।
    1. 3." V " अक्षर 
       अंग्रजी  वर्णमाला के अक्षर " V " जैसी आकृति में होता है इस कारण   इसकी खोज हुई । ये मात्र तीन ही तारो का तारामण्डल होने कारण सबसे छोटा तारामण्डल भी है ।    

          4. कालपुरूष या मृग 
                  यह भारत का मुख्य कालपुरुष है जिसे मृग भी कहा जाता                है । ये दिखने में सबसे सुंदर और नजदीक होने की वजह                  से चमकदार भी है । 



    कहा जाता है धरती पर जीतनी भी चीजे उपस्थित है उनका तारामंडल आसमान में मौजूद है मगर हम उनको ढूंढ नही पाते है । इसलिए तारामण्डल के नाम उनके समान दिखने वाली वस्तुओं के आधार पर रखा गया हैं , कई देशों में इनका नाम बदल जाता है । तारामण्डल अस्थिर है वे समय के साथ अपनी जगह बदलते जाते है इससे हम ये अंदाजा लग जाता है की तारे स्थिर नहीं होते है । मगर ये अत्यधिक दूर होने के कारण हमें इनकी चलन का अनुभव सही से नही हो पाता है । पृथ्वी के परिक्रमण के कारण ये अपनी दिशा बदल लेते है जिसकरण पुराने समय में हमारे बुजुर्ग इनकी स्थिति के द्वारा दिशा और मौसम का अंदाजा लगा लेते थे । मगर तारे अपने मार्ग पर भी गति कर रहे है और ये हजारों वर्षों में अलग भी हो जाते है और एक नया तारामंडल बना लेते है या पुराना तारामंडल तोड़ लेते है । इनकी गतिविधियों को टेलीस्कोप द्वारा देखा जा सकता है ।








     

      अरबों वर्षो पूर्व ये हरी-भरी दिखने वाली हमारी पृथ्वी का कोई अस्तित्व नहीं था । तब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक पिण्ड जैसी सरंचना में पाया गया हो...

     



    अरबों वर्षो पूर्व ये हरी-भरी दिखने वाली हमारी पृथ्वी का कोई अस्तित्व नहीं था । तब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक पिण्ड जैसी सरंचना में पाया गया होंगा । तब उस पिण्ड में किसी वजह से विस्फोट हुआ और यूनिवर्स कई कणों में विभाजित हो गया जिसे प्रोफेसर स्टीफेन हॉकिंग के अनुसार महविस्फोट सिद्धांत ( big bang theory ) नाम दिया गया । उसी घटना के तत्पश्चात पृथ्वी का जन्म भी हो गया था ये प्रारंभ से ही सूर्य का परिक्रमण करने लगी थी क्युकी सूर्य का पैसिव फोर्स पृथ्वी के गुरुत्व बल से अधिक है । सूर्य के परिक्रमण और अपने घूर्णन गति के कारण पृथ्वी के वातावरण में परिवर्तन आने लगा ये एक समय तक पूर्णतः बर्फीले आवरण से भी ढक गई थी । फिर पृथ्वी पर गैसीय संघनता का निर्माण हुआ और जल ( H2O) का भी विकास हुआ । और अंततः जीवन का निर्माण हुआ , माना जाता है पृथ्वी पर सर्वप्रथम पनपने वाला जीव शैवाल ( algae) को कहा गया । यही से जीव-निर्माण की प्रक्रिया भी प्रारम्भ हो चुकी थी , पृथ्वी में शुरुआत से ही विकास की क्रिया चलती आ रही है और ये परंपरा आज भी बरकरार है ।




    मनुष्य को यूनिवर्स का बुद्धिमानन जीव और पृथ्वी को अनोखा गृह कहा गया है क्योंकि यहां जीव जगत का अस्तित्व है । मगर वर्तमान में सौरमंडल के कुछ गृहों पर जीवन होने के पुख्ता प्रमाण प्राप्त किए जा चुके है और भविष्य में और भी सार्थक संभावनाएं के आसार देखे जारहे है । तो क्या ये संभव नहीं है की हमारी पृथ्वी जैसा ही गृह हो सकता है ? क्या इस अनंत ब्रह्मांड में केवल हमारी पृथ्वी पर ही जीवन है ? या कोई हमारे जैसी प्रजाति के जीव भी होंगे ? आपका क्या विचार है ? हमे कॉमेंट के द्वारा अपने विचार रख सकते है । आपके विचार क्या पता भविष्य की कोई नई पहल बन जाए ।

    पृथ्वी


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    अंटार्कटिका महाद्वीप : पृथ्वी के सात महाद्वीप में से इकलौता ऐसा महाद्वीप जहा पर मनुष्य नहीं रहता है । यह कुल 150 लाख वर्ग किलो मीटर में एक ...


    अंटार्कटिका महाद्वीप : पृथ्वी के सात महाद्वीप में से इकलौता ऐसा महाद्वीप जहा पर मनुष्य नहीं रहता है । यह कुल 150 लाख वर्ग किलो मीटर में एक विशालकाय क्षेत्रफल में बसा हुआ है । यहां पर धरती का न्यूनतम तापमान पाया जाता है क्यों की यह जिस बर्फ की चादर में लिपटा हुआ है उसकी मोटाई ही 1.5 किलो मीटर की है । यह महादीप दक्षिण ध्रुव के समीप स्थित है , यह धरती धरती का पांचवा विशालमहादीपदीप है जो 98 % बर्फ से ढका हुआ है । 
    अंटार्कटिका का इतिहास :  माना जाता है 17 वी शताब्दी से ही इसकी खोज प्रारंभ हो चुकी थी मगर नियमित रूप से सन् 1774 ईसवी में ब्रिटिश अन्वेषक जिसका नाम जेम्स कुक था उसने इसकी मौजूदगी का पता लगाया । अनुमान लगाया जाता है की 11600 वर्षो पूर्व अंटार्कटिका बर्फ से ढका न होकर एक साधारण शहर हुआ करता था जिसे अटलांटिक या अटलांटा नाम दिया गया । 
    अंटार्कटिका का आकर्षण : इस महाद्विप का मुख्य आकर्षण बिंदु इसकी अद्भुत झीले है । लगभग 150 झीलों का सौंदर्य देखने और इसका आनंद उठाने के लिए देश - विदेश से पर्योटको की भिड़ लगी रहती है । आखिर क्यों न आए ? इसकी सौंदर्यता को देख हर कोई दीवाना हो जाता है इसका । कई चलचित्र फिल्मों में इसकी सुंदरता की झलक दिखाई फिल्माई जाती है । यहां लगभग 900 अनमोल खाने और 70 से अधिक प्रकार की जीव - प्रजातियां का निवास है । यहां जो मुख्य जीवधारी है वो हम सबका चहेता पेंगुइन है , इस महाद्विप पर इसकी बहुलता है । इसके अलावा भी अन्य प्रजातियां जैसे - सिल , व्हेल , पीसू इत्यादि पाई जाती है । यह महाद्विप अपने आप में संपत्तिशाली और पूर्ण प्राकृतिक है , यहां पर सीसा , तांबा और यूरेनियम जैसी बहुमूल्य खनिज उपलब्ध है ।  
     वर्तमान स्थिति : अंटार्कटिका महाद्वीप पर कई वैज्ञानिक स्टेशन केंद्र स्थापित किया जा चुके है । भारत ने भी अपना गंगोत्री केंद्र स्थापित कर चुका है । भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमरीका (U.S.A.) , रूस , चीन , पेरू , कोरिया  और अर्जेंटीना शामिल है । जैसे - जैसे इस महाद्विप के रहस्य से पर्दा उठता जा रहा है दुनिया का ध्यान इसकी तरफ खींचा चला आ रहा है । हालही ही में और भी नए प्रोजेक्ट तैयार किए जा रहे है इस महाद्विप पर जीवन बसावट के उपलक्ष्य में । हां मगर कुछ देशों ने इस पर आपत्ति जताई है और विरोध किया है ।  क्योंकि नवीकरण और शहरीकरण से अंटार्कटिका का अस्तित्व खतरें में हो सकता है । 


    क्रेटर ( crater ) - अंटार्कटिका पर काफी बड़े बड़े क्रेटर बने है , कहा जाता है क्रेटर अन्य गृह से आए एलियन द्वारा निर्मित है । दरअसल ये उल्कापिंड या किसी प्रकार चट्टान के गिरने से एक बड़ा सा गड्ढा बन जाता है ।
     हिमस्खलन ( avalanche ) - इस महादीप पर हिमस्खलन होना एक आम बात है । ऐसी ढलान वाली जगह पर जहा बर्फ के ढहने से उसका बहाव एक तूफान का रूप धारण कर लेता है , वही avalnche है ।  

    हिमशेल ( iceberg )   - अंटार्कटिका पर काफी मात्रा में बड़े और विशाल iceberg होते है । ये कभी कभी मिस्र के पिरामिड जेसे भी विशालकाय होते है । ये चौकोर , तिकोने , और वृत्त आकर में पाए जाते है , इनका 9 गुना भाग पानी में डूबा होता है ये उत्प्लावन बल का उपयोग कर तैरता रहता है ।  
    मतभेद : अंटार्कटिका में समय समय पर प्राकृतिक घटनाएं होती है जो लोगो को आश्चर्य में डाल देती है । कई लोगो ने इसे अन्य दुनिया की छेड़छाड़ करने का दावा और उनके यहां हस्तक्षेप का दावा भी करते है । कई पर्योटको ने उड़नतश्तरी के वहा देखे जाने का विश्वास दिलाते है । और यह एक मात्र ऐसा महाद्विप भी है जहा कोविड संक्रमण का प्रकोप निष्क्रिय देखा गया । वाकई में अंटार्कटिका कितना अजीब हैं न ? आपको क्या लगता है हमें अपने विचार अवश्य दे ।  

               

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                  क्यों खतरें में है सेंटिनल आइलैंड ?

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       बंधा पहाड़ महाराष्ट्र के सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला पर बसे एक पहाड़ का नाम है । बंधा पहाड़ प्राचीन समय का अज्ञात और अंजान पहाड़ है जो नवगाव ...

     




     बंधा पहाड़ महाराष्ट्र के सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला पर बसे एक पहाड़ का नाम है । बंधा पहाड़ प्राचीन समय का अज्ञात और अंजान पहाड़ है जो नवगाव नामक गांव जहा आदिवासियों का इलाका है उसी के समीप भीषण जंगलों से घिरा हुआ है ।

      चांदन बाबा का पहाड़ का शाब्दिक अर्थ होता है " चांद का पहाड़ " जो सबसे ऊंचे पहाड़ को कहा जाता है ।

     

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    चांदन बाबा का पहाड़ का शाब्दिक अर्थ होता है " चांद का पहाड़ " जो सबसे ऊंचे पहाड़ को कहा जाता है ।

    आपने आज तक  कई पहाड़ों और जंगलों के बारे में सुना या पड़ा होंगा जिसमे से कई पहाड़ों ने आपको हैरान भी किए होंगा । आज में ऐसे ही हैरत से भरपूर...



    आपने आज तक  कई पहाड़ों और जंगलों के बारे में सुना या पड़ा होंगा जिसमे से कई पहाड़ों ने आपको हैरान भी किए होंगा । आज में ऐसे ही हैरत से भरपूर पहाड़ के बारे में बताने वाला हूं जिसके बारे में जानकर आप यकीनन वहा जाने के लिए गदगद हो जावोंगे । जब पढ़ने पर इसका इतना प्रभाव पड़ता है तो आप सोचिए इसको वास्तविक में देखने में कितना रोमांच आता होंगा । मैं जिस पहाड़ की बात कर रहा हूं वो दुनिया का सबसे रहस्यमय पहाड़  " चंद्र पहाड़ " है जिस का नाम सुनते ही कई के रोंगटे खड़े हो जाते है । जी हां , मैं दक्षिण अफ्रीका की गोद में सिमोया हुआ उसी पहाड़ के बारे में बात कर रहा हूं जहा पर आज भी किसी मानविक संसाधनों का पहुंच पाना असम्भव है । मैं उसी पहाड़ के बारे में बता रहा हूं जहा तक पहुंचने के लिए सेकडो लोगो ने अपना बलिदान किया है । चंद्र पहाड़ पर बना एक उपन्यास जिसको बांग्ला भाषा में विभूतिभूषण जी ने अनुवाद किया है उसमे बताया गया है की इस पहाड़ पर सोने की खदानों की खोज में कई गिरोह ने अनगिनत प्रयास किए है। जिनके किस्से को रोमांचक तरीके से इस उपन्यास में पिरोया गया है ।

    इस उपन्यास ने कई अनकहे पहलू के  बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है । द माउंटेन ऑफ द मून दक्षिण अफ्रीका के जंगलों के बीचों - बीच बसा हुआ है । साइबेरिया देश के नजदीक ही घने जंगलों के मध्य कही गुमनाम जगह पर इसकी स्थिति से किसी की पहुंच से परे है ये पहाड़ । इस पहाड़ के बारे में सन् 1909 में एक यूरोपियन भौगालिक खोजकर्ता ने पता लगाया और उन्होंने कुछ मानचित्र भी बनाए थे । फिर बादमें  किसी रहस्यमय तरीके से उस भौगालिक विशेषज्ञ की हत्या हो गई और वो मानचित्र भी कही गुम हो गए है । बाद में 19018 में " द माउंटेन ऑफ अफ्रीका " नामक बुक में पहली बार इसका प्रकाशन हुआ । क्योंकि यहां कोई आता जाता नही इसलिए इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं मिल पाई है । विशेषज्ञ का मानना है की चंद्र पहाड़ किसी ज्वालामुखी की गोद में बसा हुआ है , ये ज्वालामुखी कई हजारों सालों से निष्क्रिय है । इंग्लिश के अक्षरों का संक्षेप में इसका उच्चारण " MOTH" होता है । चंद्र पहाड़ अनोखे और अमूल्य हीरो और सोने की खदानों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है ।  जिस चक्कर में आज भी कई लोग यहां चले आते है और जंगल में ही भटक जाते है जो उनमें बचकर वापस आ पाते है वो फिर उस भयानक जंगल के बारे में हमे  बताते है । क्योंकि चंद्र पहाड़ तक पहुंचने के लिए दक्षिण अफ्रीका के उस भयानक और विशाल जंगल को पार करना पड़ता है । जहां कई जहरीले और जानलेवा जानवर पाए जाते है उनमें से कई जानवरो से तो हम आज भी अंजान है ।
    ये कभी न खत्म होने वाला जंगल है क्योंकि अगर कोई इस जंगल में एक बार घुस जाता है तो वो वापस जिंदा नहीं आ पाता है । यह जंगल इतना खतरनाक है की आपको वहा समय और दिशा का पता नहीं लग पाएगा क्योंकि वहा ऊंचे और घने विशाल वृक्ष होते है जो सूरज की रोशनी को ढक लेते है जिससे आपको दिन में अंधेरा सा दिखने लगता है । इन्हीं जंगल में कही जंगली आदिवासी जो बहुत घातक होती है उनसे भी सामना हो सकता हैं । इनको मानव के हस्तक्षेप से सख्त नफ़रत है वो आम मनुष्य से बिल्कुल अलग है उनकी भाषा , रहन - सहन और व्यवहार हमसे भिन्न होता है । इन सबसे अगर कोई बच भी जाता है तो इस जंगल में भूख और प्यास ही उसकी जान ले लेगी । और सबसे बड़ी बात अगर आपको इस जंगल की दिशाओं का सही ज्ञान नहीं है तो आप भूल- भुलैया का शिकार हो जायेंगे । क्योंकि इस जंगल में एक जैसी दीखने वाली चीजे होती है जेसे - पेड़ , टीले और चट्टाने इत्यादि । इस जंगल को सरवाइव करने के बाद असली अग्नि परीक्षा शुरू होती है । चंद्र पहाड़ को चढ़ने के लिए 10 से 12 दिन का समय लग जाता है उसके लिए भी पर्वत चढ़ाई का परीक्षण करना पड़ता है । क्योंकि पहाड़ की चढ़ाई के दौरान चट्टाने ढहती रहती है । और भी चढ़ाई के दौरान कई परेशानियां आती है जिसका सामना करने के लिए साहस और धैर्य भरपूर चाहिए होता है । इस पूरे सफर के दौरान किसी चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वो है "हौसला" अगर इंसान के पास ये नही है तो वो उसी वक्त एक मुर्दे के समान है । इस पहाड़ पर अभी तक कुछ ही लोग पहुंच पाए है और उनमें से कुछ एक ही वापस जिंदा लोटे है । 


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      सेंटिनेल आइलैंड : अंडमान  और निकोबार द्वीप समूह का नाम आप लोगो ने सुना ही होगा ये हमारे देश के 7 केंद्र शासित प्रदेश में से एक है । यह कुल...

     


    सेंटिनेल आइलैंड :अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का नाम आप लोगो ने सुना ही होगा ये हमारे देश के 7 केंद्र शासित प्रदेश में से एक है । यह कुल 572 छोटे बड़े द्विपो का संघम है 8,249 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ हैं । इन्हीं द्वीपो में से एक द्वीप है सेंटिनल आइलैंड जो पोर्ट ब्लेयर से 50 किलो मीटर की दूरी पर महज 23 वर्ग मिल में बसा हुआ एक टापू है । इस टापू पर सेंटीनेलिया नामक जंगली प्रजाति का वास-वसन हैं जो हमारी दुनिया से परे और बाहरी दुनिया से अंजान है । जब-जब हमने इनसे संपर्क बनाने की कोशिश की इन्होंने तीर और भाले ही चलाए है । मगर कुछ समय से इनकी आबादी में गिरावट देखने को मिल रही है , अकड़ो की माने तो अब केवल 60 - 65 ही शेष रह गए है । इनका इस तरह कम होना और इस असभ्य व्यवहार का अभी तक कोई पुख्ता कारण नहीं मिल पाया है । इनके इस आइलैंड को आप मैप पर नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड के नाम से खोज सकते है । यहां अभी तक इंसानी हस्तक्षेप का कोई विकासनीय स्थायित्व नहीं हुआ है । 

    चित्र: गूगल वेबसाइट


    सेंटिनल का चर्चा में होने का कारण : सन् 1883 ईसवी में जब से इस आइलैंड की खोज हुई है तब से यह चर्चा का विषय बना हुआ है और आज ये बहुत बड़ा और रहस्यमय पहेली बन गया है । और आज की तारिक में हर कोई इसके डरवाने किस्से सुनकर दंग रह जाता है । समय के साथ इसके नए - नए मामले आते जारहे है और ये और भी सुर्खिया बटोर रहा है । चर्चा का विषय ये तब से बन गया था जब दृतीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सैनिकों की एक घायल टुकड़ी ने भूल - भूलिए में इस आइलैंड पर आश्रय लेने के लिए आ पहुंचे । फिर उनमें से कुछ ही सैनिक किसी तरह अपनी जान बचाकर भाग गए और बाकी को सेंटीनेलिया ने तीर - कमान से खदेड़ दिया । ऐसा ही सन् 1981 में एक जहाजी बेड़े के साथ हुआ वो भी अपना मार्ग भटकर उस आइलैंड पर जा पहुंचा था ,  हालाकि उसे हेलीकॉप्टर द्वारा बचा लिया गया । सन् 2006 में दो मछुवारे मछलियों की तलाश में भटकते -  भटकते सेंटिनल पर पहुंच गए थे और 3 दिन के बाद उनकी लाश दूसरे मछुवारे को बरामद हुई । सर्वाधिक चर्चित तो ये आइलैंड तब हुआ जब एक अमेरिकन ईसाई धर्म प्रचारक जॉन एलन चाऊ ने ईश्वर का दूत बन कर गैरकानूनी तरीके से सेंटीनेल पर जा पहुंचा । और दो दिन के अंदर ही किसी वजह से उसकी मौत हो गई , जो मछुवारा उसको आइलैंड तक छोड़ कर आया उसके पास जॉन एलन चाऊ का लिखा हुआ खत भी बरामद हुआ । अनुमान लगाया गया की सेंटीनेलिया ने ही उसकी हत्या करी थीं । सरकार ने भी कई बार असमर्थ प्रयास किए उनसे संपर्क साधने और अपना दोस्ताना दिखाने का मगर बात नही बनी और आखिर में सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए थे । ताकि दोनो पक्षों को जनहानि से बचाया जा सके । 
       चित्र : गूगल वेबसाइट

    खतरें में है सेंटीनेलिया : जॉन एलन चाऊ की मौत को लेकर अमेरिका भी परेशान है सेंटिनल आइलैंड से और उसका भी छाया मंडरा रहा है अब । और भी कई देशों ने इस आईलैड पर अनमोल खनिज पदार्थ की प्राप्ति की आंशका जाता रहे है । इसी तरह के संपति लालच ने सेंटिनल आइलैंड का अस्तित्व अब खतरें में है । हालाकि इनकी भाषा संकेतात्मक नही है जिस वजह से आपस में कोई वार्तालाप जैसा कुछ हो नहीं पारहा  है । 
    फिर भी उनकी शारीरिक प्रतिक्रिया और हिंसात्मक व्यवहार को देख कर इतना तो समझ में आ रहा है की वो हमसे नफ़रत करते है । और वो हमें किसी तरह का खतरा समझते है इसलिए वो अपने आप की रक्षा के लिए हमसे लड़ते है । वो अपनी छोटी सी ही दुनिया में खुश है उनको इसके अलावा कुछ नहीं चाहिए । कुछ विशेषज्ञ ने भी आंशका जताई है मानव हस्तक्षेप से उनकी प्रजाति में मानवीय बीमारियां का प्रकोप पनप सकता है । उनका वातावरण हमारे वातावरण से भिन्न और शुद्ध है इसलिए हमारा कोई अधिकार नहीं बनाता की हम उनके जीवन में ज़हर घोले । अगर भविष्य में उधर से ही कोई प्रस्ताव या कोई कदम होंगा तब ही हम उनसे समझौता करेंगे । मगर वर्तमान में इनका वसन हमारे अवलोकन और हलचल से प्रभावित हो रहा है इन्हे और परेशान करना उचित नहीं है । जरा सोचो कल कोई अन्य गृह से एलियन आकर हमे इस तरह परेशान करेंगे तो हम क्या करेंगे ?  मुझे पता है मिसाईल , रॉकेट और परमाणु ही लंच करेंगे न । मुझे पता है , जब अपने पर आती है तो कैसा लगता है । जो भी है ये अपनी जिंदगी से खुश है और फिलहाल इनका कोई इरादा नहीं है हमसे किसी प्रकार का संबंध बनाने का । और इतना तो हमें भी समझ में आजाना चाहिए आखिर हम ब्रह्मांड के सबसे बुद्धिमान जीव है । 
    आपको क्या लगता है सेंटिनल आइलैंड खतरें में है या नहीं हमे आपके विचार जरूर दे ।

          लेखक


    आर. टी. जे. डी. बड़वानी जिले के देवली नामक नाम गांव से है । इन्होंने कई लेख लिखे है , आप इन्हे प्रतिलिपी जैसे राष्ट्रीय स्तर सोशल प्लेटफार्म पर सक्रिय देख सकते है। हालही ही में ये  ब्लॉग की दुनिया में अपना प्रदर्शन  दिखा रहे है । आप मात्र 13 वर्ष की आयु से ही समाज  कल्याणी सेवा जैसे भाव से प्रभावी होकर लेखन  कार्य शुरू कर दिए थे । आप ने बड़वानी में अपनी 12 वी तक का  शिक्षण पूर्ण किया । अब आप सोशल मीडिया पर कार्यगत है ।





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