AutorRTJD 2021 - Incognita Island

 नॉर्वे ( norwegian ) देश उन बेशुमार देशों की गिनती में आता हैं जहा की सौंदर्यता और खूबसूरती दुनिया भर में एक मिसाल कायम करती है । मैं यू ही...

 नॉर्वे ( norwegian ) देश उन बेशुमार देशों की गिनती में आता हैं जहा की सौंदर्यता और खूबसूरती दुनिया भर में एक मिसाल कायम करती है । मैं यू ही बड़ा चढ़ा कर नहीं बोल रहा हूं , बल्कि जब आप खुद इसके करिश्में के बारे में जानोगे तो यकीनन दंग रह जाएंगे । नार्वे नॉर्थन यूरोपियन देश है जिसकी राजधानी ओस्लो( oslo) है और यहां की करेंसी क्रोन ( Krone) है । नार्वे को दुनियाभर में कई सारे नामो से जाना जाता है जेसे ~" उजालों का देश " , " आधी रात का सूरज " ," शांति की मिसाल "  और भी कई नाम है इस देश के । नॉर्वे के लोग ज्यादातर अंग्रेज़ी भाषा ही बोलते है । नॉर्वे अपनी अद्भुत प्राकृतिक घटना के कारण मशहूर है । होता यू है कि नॉर्वे अपनी भौतिक स्थिती के कारण यहां पर एकांतर मौसम बना रहता है , सदैव सूरज की रोशनी पड़ती रहती है जिस वजह से इस देश के ज्यादातर हिस्सों में रात ही नही पड़ती है । नॉर्वे में 76 दिन तक सूरज नहीं डूबता है हालाकि रात को 12 बजकर 43 मिनट पर 40 मिनट के लिए ही डूबता है या यू कहे मात्र 40 मिनट की रात होती है नॉर्वे में । 


इस प्रकार इस देश में हमेशा दिन जैसा ही माहौल बना रहता है । यहां के लोगो में सोने और उठने की अलग ही दिनचर्या बनी हुई है । इसके अलावा भी नॉर्वे को कई और अनूठे अंदाज के लिए जाना जाता है । यहा के लोग किताबो को बहुत ज्यादा प्राथमिकता देते है और नॉर्वे की सरकार भी किताब लिखने पर उचित प्रोत्साहन की सुविधा प्रदान करती है । इस सुंदर और स्वर्ग जेसे देश में ऐसी भी जगह है जिस का नाम हेल ( hell )  है । इसके अलावा नॉर्वे में मुजरिमों को अभिन्न छूट दी जाती है , यहां के कैदियों को इंटरनेट की सुविधा दी जाती है जो अपने आप में अनोखी बात है साथ ही कैदियों को एक सप्ताहिक अवकाश भी दिया जाता है । यहाँ के कैदी एक आम नागरिक की तरह ही जेल में काम करके एक अच्छा खासा वेतन भी अर्जित कर लेते है । इतना ही नहीं अगर आप नॉर्वे में किसी व्यक्ति की हत्या भी कर देते है तो शायद आपको उम्र कैद की सजा नही होंगी क्योंकि यहां की सबसे बड़ी सजा 21 साल की ही होती है । नॉर्वे को 2013 में वैश्विक शांति सूचांक द्वारा सबसे शांत देश की श्रेणी में 162 देशों की हिस्सेदारी में 11 वा स्थान दिया है । इसी वजह से नॉर्वे ने 2017 में FM RADIO की संचार सुविधा को पूर्ण तरह से प्रतिबंध कर दिया है जिससे वहां के वातावरण में कोई बाधा नहीं आए । नॉर्वे में 17 मई 1814 को संविधान बनकर लागू हो गया था इसलिए 17 मई नॉर्वे में राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है । इस तरह की खूबियों से भरपूर देश में कोन नहीं जाना चाहेगा मगर मैं आपको बता दू अगर आप नॉर्वे में जाकर डेरा डालकर एक लंबे समय तक रहना चाहते है तो ये सुविधा भी बिलकुल फ्री है नॉर्वे अपने पर्यटकों को विशेष छूट प्रदान करती है । 



 आए दिन वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष एजेंसियों ने कुछ न कुछ उपलब्धियां हासिल किया करते है । मानवता का विकास तीव्रता से हो रहा है और यही मसला है ज...

 आए दिन वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष एजेंसियों ने कुछ न कुछ उपलब्धियां हासिल किया करते है । मानवता का विकास तीव्रता से हो रहा है और यही मसला है जो एक दिन भविष्य में हमे नए घर कहने का मतलब नए ग्रह की जरूरत पड़ने वाली है । नासा जेसी उत्कृष्ट अंतरिक्ष संस्था निरंतर इसी समस्या का हल ढूंढने में लगी हुई है ।


यहां तक उन्होंने 2031 तक साधारण मनुष्य की यात्रा को भी सफलतापूर्वक कराने का दावा किया है । और ये बात कुछ हद तक सही भी लगती है क्योंकि इससे पहले भी नासा ने कई असंभव मिशन को अंजाम दिया है । और इसी कड़ी में अब नासा ने बहुत ही बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है नासा के वैज्ञानिको ने 13,000 प्रकाश वर्ष दूर एक नए जमे हुए ग्रह का पता लगा लिया है जिसका द्रव्यमान पृथ्वी के समीम ही है । इस प्लेनेट की खोज से हमारे ग्रह के इतर दूसरी तरह की ग्रहीय व्यवस्थाओं को समझने में मदद मिलेंगी । शोधकर्ताओं की मानी तो ये ग्रह फिलहाल में बहुत ठंडा है जिस कारण इस वक्त वहा मनुष्य के रहने लायक वातावरण नही है । मगर भविष्य में वहा एक अनुकूल वातावरण की घनिष्ट आसार देखे जा सकेंगे । इसके अत्यधिक ठंडे होने के पीछे इसके तारे का बेहद निस्तेज होना है । संयुक्त राज्य अमेरिका
 में नासा की जेट प्रोपल्सन लैबोरेटरी के योसी श्वाटॉर्चवाल्ड ने कहा है " माइक्रोलेंसिंग के जरिए खोजा गया ' आइसबॉल ' सबसे कम द्रव्यमान वाला ग्रह है  । " आपको बता दे कि माइक्रोलेंसिंग एक ऐसी तकनीक होती है जो पृष्ठभूमि के तारो का प्रयोग फ्लैशलाइट के तौर पर करके सुदारवर्ती चीजों की खोज की सुविधा प्रदान करती हैं ।      

इन्ही सभी संकेतो से एक बात तो साफ नजर आती है की नासा " आईसबॉल " पर जीवन बसाने की फिराक में है । अभी तक नासा ने इस खोज से संबंधित कई पहलुओं को गुप्त ही रखा है । और इसके बारे में कोई आधिकारिक सूचना भी नही दी है वो इस मिशन को लोगो से छुपाकर काम कर रहे है । 


 कुछ दिन पहले ही ऐसी है खबर आई थी की नासा ने पृथ्वी के चारो ओर मानव निर्मित अवरोधक का पता लगाया है । नासा के अनुसंधान के द्वारा पृथ्वी के बाहरी आवरण में मानवनिर्मित अवरोधक का पता चला है जो उच्च ऊर्जा वाले अंतरिक्ष विकिरण के अनुसंधान के द्वारा पृथ्वी के बाहरी आवरण में मानवनिर्मित को ग्रह पर आने से बाधित करता है । मनुष्य लंबे अरसे से पृथ्वी के भू-परिदृश्य का आकर निश्चित करने का प्रयत्न करता आ रहा है । और अब तमाम प्रयासों के बाद वेज्ञानिको ने ये पाया की हम अपने निकटवर्ती अंतरिक्ष पर्यावरण का भी मापन करने में सक्षम है । अनुसंधान के द्वारा एक विशेष प्रकार की संचार व्यवस्था - बहुत कम आवर्ती वाली रेडियो संचार - व्यवस्था को अंतरिक्ष के कणों को प्रभावित करते हुए देखा गया । इस वजह से कणों के स्थान में परिवर्तन की क्रिया प्रभावित होती है । कई दफा ये परस्पर प्रक्रिया अंतरिक्ष की उच्च ऊर्जा वाले विकिरण के विरुद्ध पृथ्वी की चारो ओर एक अवरोधक बना लेती है । इस अनुसंधान का का प्रकाशन ' स्पेस साइंस रिव्यू '( space science review ) ' जर्नल में हुआ था ।




मनुष्य ने जितना विकास धरती पर किया है भविष्य में उतना ही विकास अंतरिक्ष में देखने को मिलेगा । और ये कड़वा सच भी है की मनुष्य ने जितनी गंदगी धरती पर फैलाई है उतना ही प्रदूषण वो अंतरिक्ष में भी करेगा । माना की नए खोजो और अविष्कारों से उन्नति होती है मगर ऐसी उन्नति किस काम की जिसके बदले हमे अपने अस्तित्व को क्षति पहुचाते हैं । आज नासा विश्व की उत्कृष्ट अंतरिक्ष संस्था मानी जाती है । मगर उनकी सफलताओं के पीछे उन्होंने भी कई जनहानि को क्षति पहचाई और कुदरत का उत्खनन किया है । नासा उन्ही खबरों को सार्वजनिक करती है जो उनके काम के बारे में होती है उनको नही जो उनकी खामियां पता चले । क्या मेरे इस विचार से आप भी सहमत है ? नहीं तो क्यों ? जो भी आपको सही लगे हमे अपने विचार साझा करे । 

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 टेक्नोलॉजी आधुनिक जगत की रीड की हड्डी ( Backbone ) हैं तो इंटरनेट इसका हृदय हैं । टेक्नोलॉजी नितांत इंप्रूव होती जा रहीं है और नए - नए फीचर...

 टेक्नोलॉजी आधुनिक जगत की रीड की हड्डी ( Backbone ) हैं तो इंटरनेट इसका हृदय हैं । टेक्नोलॉजी नितांत इंप्रूव होती जा रहीं है और नए - नए फीचर्स अपडेट हो रहे है । Google का एक बहुत ही खास फीचर है GPS तकनीक ।  हम जब भी कोई सॉफ्टवेयर को ओपन करते है तो हमे  लोकेशन की अनुमति देने के लिए GPS SYSTEM को ऑन करना पड़ता है । ये GPS SYSTEM हर एक मोबाइल , लैपटॉप और कंप्यूटर में उपलब्ध होता है । आइए अब हम इस GPS तकनीक को जानते है और हमारे जीवन में इसकी भूमिका को देखते है ।


GPS क्या होता हैं ? 

GPS का फुल फॉर्म है Global Positioning System ( वैश्विक स्थिति प्रणाली ) होता हैं । GPS एक Global Navigation satellite ( वैश्विक पथ प्रदर्शन उपग्रह ) सिस्टम है । जो किसी भी जगह की स्थिति का लोकेशन बताता है । 


इस GPS का इस्तेमाल सर्वप्रथम सन् 1960 में अमेरिकी Defence Department ( रक्षा विभाग ) ने किया था ।  शुरुवाती दिनों में इस तकनीकी का प्रयोग मिलिट्री और आर्मी में किया जाता था बाद में GPS सार्वत्रिक रूप से किया जाने लगा ।  GPS का कनेक्शन सीधा सैटेलाइट से जुड़ा होता है जो वहा से सिग्नल भेजता रहता है और इन सिग्नल को रिसीव करने के लिए उपकरण बनाए जाते है । हम जो सेल फोन इस्तेमाल करते है वहा जो सिग्नल आता वो 4 से 5 सैटेलाइट की सहायता से आता  है । और इसी कारण हम किसी भी नेटवर्क यूजर का लोकेशन इतनी आसानी से लगा  पाते है । GPS एक इंटरनल सिस्टम है जिसकी लिंक सैटेलाइट में इंस्टॉल्ड होने के माध्यम से हम लोकेशन देख पाते है । इसके अलावा GPS से हम दुरी ( Distance ) , गति ( Speed ) और मानचित्र ( Map ) भी प्रदान करता है । 



GPS की कार्य प्रणाली ~

जेसे की मैं पहले ही बता चुका हूँ GPS एक Internal System हैं जो रिसिवर ओर सॅटॅलाइट के बीच एक माध्यम के रूप में कार्य करता हैं । जब सॅटॅलाइट कोई सिग्नल भेजता हैं तो मोबाइल रिसीवर का काम करता है । हर वो मोबाइल जिसमे नेटवर्क आता है वो किसी नजदीकी सॅटॅलाइट से जुड़ा हुआ होता है और जब हमारे मोबाइल में सिग्नल आत्ता है तो वो हमारे मोबाइल की लोकेशन ओर अन्य जानकारियां सॅटॅलाइट को दे देता है । GPS का ज़्यादातर उपयोग ट्रांस्पोर्टिसम की दुनिया मे होता हैं । यात्रि अपन रास्ता ढूंढने ओर किसी टूर पॉइंट का पता आदि GPS की सहायता से कर पाते है । जब कोई ड्राइवर अपना रास्ता भटक जाता है तो वो सबसे पहले मोबाइल निकालकर गूगल पर या मैप में जाकर अपना लोकेशन देखता है । मैप Google का ही एक हिस्सा है जो GPS का इस्तेमाल कर लोकेशन्स बताता रहता है । सॅटॅलाइट किसी जगह को बार बार सर्च करने पर उसका लॉकेशन सेव कर लेता है और उसकी स्थिति को मुख्य स्पॉट बना देता है । किसी एक ही जगह से जितने अधिक GPS ऑन किये जाते है लॉकेशन मिलते है वहां सॅटॅलाइट उपग्रडेशन का काम अधिक करता है । मैप पर जो लाइव पिक्चर दिखाई देती है वो असल मे live या stream न होकर नविगटेड 3D Visualization का कमाल होता है । 



  सौरमंडल में सौर परिवार का सबसे बड़ा ग्रह और सबसे भारी ग्रह बृहस्पति है इसका वजन दूसरे ग्रहों की तुलना में 2.5 गुना अधिक भारी है।

 


सौरमंडल में सौर परिवार का सबसे बड़ा ग्रह और सबसे भारी ग्रह बृहस्पति है इसका वजन दूसरे ग्रहों की तुलना में 2.5 गुना अधिक भारी है।

 समुद्र में पाए जाने वाले प्राणियों में सबसे मुख्य मछलियां ही आती है । और इसलिए भी समुद्र की रानी मछली को कहा जाता है । आज तक हमने समद्र में...

 समुद्र में पाए जाने वाले प्राणियों में सबसे मुख्य मछलियां ही आती है । और इसलिए भी समुद्र की रानी मछली को कहा जाता है । आज तक हमने समद्र में सिर्फ तैरने वाले जीवों से तो परिचित है मगर आज हम जमीन पर रेंगने और चलने वाले जीव के बारे में बात करेंगे । हम सब ये तो जानते है की जंगल का राजा शेर को कहा जाता है । मगर हम अब बात करने जा रहे है समुद्र के शेर के बारे में , आप जिस तरह जंगल के खूंखार शेर को जानते है ये इसके एक दम विपरीत प्राणी है । 

सी~लाईन


सील ( Seal ) , सी-लॉयन ( Sea-Lion ) और वालरस एनिमल पिनेपेड्स ( Pinnipeds ) के रूप में पाए जाते है । पिनिपेड का मतलब ऐसे जीवों से होता है जो थल और जल दोनो आवरण में चल फिर सकते है ।  सील और सी-लॉयन ( जलव्याघ्र ) में कुछ बड़े अंतर है जेसे की सी-लॉयन अपने चारो पट्टिका ( फ्लिपर्स ) का इस्तेमाल कर जमीन पर भी चल सकता है जबकि सील अपने पीछे के हिस्से का सहरा लेकर छलांग लगाकर चलता है । सी-लॉयन दिखने में भालू जैसा लगता है जबकि सील चिकनी चमड़ी वाला व्हेल जैसा दिखता है । नर सी-लॉयन का वजन लगभग 363 किलोग्राम तक होता है और उसकी ऊंचाई 9 फीट के आस पास होती है । जबकि मादा सी-लॉयन का वजन 181 किलोग्राम और ऊंचाई यही कही 6 फीट के आस पास होती है । ये इतना भरकम शरीर लेकर भी पानी में आसानी से तैर लेता है । यह 40 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ्तार से पानी को चीरता हुआ तैर लेता है । इसके कान तो होते है मगर आकर में बहुत छोटे जिस वजह से उनमें पानी नहीं घुस पाता है ।  इतना ही नहीं सी-लॉयन अपने शिकार के लिए लम्बे - लम्बे गोते भी आसानी से लगा लेता है । ये अधिकतम 900 फीट  की ऊंचाई तक गोता लगा सकता है ।  मगर ये शिकार के लिए समुद्र के अधिक गहराई में नही जाता क्योंकि वहा इनकी जान को शार्क जेसे खूंखार समुद्री जीवो से खतरा होता है । कहा जाता है बुद्धिमान जीवों की सूची में डॉल्फिन का नाम भी लिया जाता है । और हमारे जलव्याघ्र भी डॉल्फिन की तरह समझदार और चतुरता का उधारण माना जाता है । सी-लॉयन के शरीर पर बाल भी मौजूद होते है ये बाल बारीक तो होते है मगर इनकी मोटाई होने के कारण पानी में तैरने में सहयाता मिलती है । इनके चार फ्लिपर्स पानी और जमीन पर दोनो जगह काम करते है और यही विशेषता इस जीव को अन्य जीवो से अलग करती है । सी-लॉयन  का सामान्यतः गहरा भूरा रंग होता है और गोल - मोटल शरीर संरचना होती है । 



पूरे विश्व में सी-लॉयन की कुल 7 प्रजातियां पाई जाती है जिसमे से स्टेलर प्रजाती आकर में सबसे बड़ी होती है । ये पूरी दुनिया के समुद्रीय तटो पर मिल जाएंगे सिवाय उत्तरी अटलांटिक महासागर को छोड़कर । इनको ज्यादातर झुंड में देखा जासकता है क्योंकि इसको समूह में रहना पसंद है और ये सुरक्षित भी रहता है । सी-लॉयन को स्तनधारी प्राणियों की श्रेणी में रखा गया है । ये अन्य जीवो की तरह जमीन पर बच्चे देते हैं जिनका प्रारंभिक वजन 7 किलोग्राम तक होता है । इनके बच्चे चलने से पहले पानी में तैरना सीख जाता है । ये दिखने में बहुत ही मासूम और शांत स्वभाव का जीव लगता है , मगर जब इसके शिकार करने का वक्त होता है तो ये ऑक्टोपस जेसे खतरनाक समद्रीय जानवर को भी अपने शिकंजे में कर लेता है । इनका साधारण भोजन तो छोटी - छोटी मछलियां होती है मगर कभी कभार ये झुंड में हमला कर बड़े जीवो का भी शिकार कर लेते है । सी-लॉयन पानी में 20 मिनट तक अपनी सांस रोक कर तैर सकता है और खतरा महसूस होने पर यह मरने का ढोंग भी बड़ी चतुरता से कर लेता है । यह शयाना तो है ही साथ में खूंखार भी है इसलिए इसे समद्रु का शेर भी कहा जाता है । 


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 आज तक आपने कितने पक्षि देखे होंगे ? अनगिनत , जिसकी कोई गिनती नहीं है न ? चाहे वो आसमान में उड़ने वाले पक्षी हो या पालतू पक्षी या फिर जंगल औ...

 आज तक आपने कितने पक्षि देखे होंगे ? अनगिनत , जिसकी कोई गिनती नहीं है न ? चाहे वो आसमान में उड़ने वाले पक्षी हो या पालतू पक्षी या फिर जंगल और चिड़ियाघर वाले होंगे ! कोई पक्षी उसके मधुर आवाज से आपको मनमोहित किया होगा तो कईयो ने अपनी तेज उड़ान के कारण हैरान किया होगा या फिर किसी पक्षी की मासूमियत ने आपको पागल किया होगा । मगर आज हम जिस पक्षी की बात करने वाले है वो इन सबसे अलग और हटके है थोड़ा । जो अपनी लंबी चोंच के चलते दुनिया भर में चर्चित है । इसको आपने कई दफा दे


खा भी होंगा मगर आपको उस वक्त इसका नाम नही पता होंगा या याद नही आ रहा होंगा । मगर आज इसके बारे में पढ़ने के बाद आप इसे जहा भी देखेंगे तो समझ जायेंगे यह वही पक्षी है । यह पेलीकन ( Pelican )  पक्षी है जो बगुले और बतख का मिलता - जुलता स्वरूप है । आप इसे पानी में डुबकियां लगाते या किनारे पर गोते लगाते देख सकते है । पेलिकन कई रंगों में पाए जाते है पर सफेद और गुलाबी रंगो में इनको ज्यादातर देखा जाता है । ये आमतौर पर पानी की किनारे तिनके या मिट्टी के घोंसले बनकर रहते है । यह एक प्रवासी पक्षी है जो साइबेरिया और यूरोप से हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर भारत में आते है । पेलिकन पक्षी मुख्यताः भारत के पश्चिमी क्षेत्र में निवास करते है , गुजरात और महाराष्ट्र की सीमाओं पर इनको भरी संख्या में देखा जा सकता है । नवंबर से दिसम्बर तक इनका आगमन भारत में शुरू हो जाता है । ये हमेशा झुंड में ही रहना पसंद करते है जिस वजह से इनके घोसलो की संख्या बड़े तादाद में एक साथ होती है ।

  मादा पेलिकन 2 से 3 अंडे देती है और इनके चूजों का पालन - पोषण दोनो पक्षी मिलकर करते है । इनके घोंसले जमीन पर घास और मिट्टी में होने कारण जंगली जानवरों से खतरा बना रहता है , कई बार इनके अंडो को कुत्ते और लोमड़ी जेसे जानवर खा भी जाते है । नर पेलिकन का ओसत वजन 9 से 12  किलो ग्राम के बीच होता है इतने भारी भरकम पक्षी होने के बावजूद इनकी उड़ने की रफ्तार बहुत ही तेज होती है । इसके अलावा इन पक्षियों को समद्रीय पक्षियों में सबसे विशाल पक्षियों का दर्जा भी दिया गया है । पेलिकन पक्षियों को अक्सर साफ वातावरण में देखा गया है इसलिए इनको इतना ज्यादा लोग भी पसंद करते है । इनको भी आम मनुष्य को तरह गन्दगी और प्रदूषण बिलकुल भी पसंद नही है । पेलिकन पक्षियों का शिकार झीलों और नदियों , तालाब में रहने वाली मछलियां होती है । ये अपनी लंबी तिकोनी चोंच से पानी को चीरते हुए अपना शिकार करती है और ये नजरा देख हर कोई इस पक्षी की चतुराई की वाह - वाही करने लगता है ।

इनकी एक मुख्य विशेषता होती है , आपने रेगिस्तान के ऊट के बारे में सुना होंगा जो अपने कुब्बड़ लंबे समय तक पानी संचय करके रखता है । उसी तरह पेलिकन के गले में एक थेलीनुमा अवस्था होती है जहा ये पर्याप्त मात्रा में पानी और भोजन को संचित करके रखा लेते है और लंबे समय तक जमीन पर उतरे बिना अपना सफर जारी रखते है मगर भारत की नदियों और झीलों में बढ़ती गन्दगी और प्रदूषित जल के कारण पेलीकन पक्षियों का भारत में आवास घटता जा रहा है और धीरे - धीरे इनकी आबादी में भी गिरावट हो रही है । एक समय ऐसा आएगा जब ये पूर्ण तरह से भारत में आना बंद हो जाएंगे और तब हमें पेलिकन पक्षी भी देखने को नहीं मिलेगा । चाहे वो कोई सा भी पक्षी हो मगर हमें इनको सुरक्षित रखने का कर्तव्य है । ये हमारी जैव - विविधता जेसी प्रकरण में अपनी सहभागिता देते है और कुदरत के नियम का पालन करते है । मगर कही न कही मानव कुदरत के नियम का पालन न करके इसके खिलाफ जा रहा है ।

हालही ही में 5G नेटवर्क लाने के लालच में रेडियो फ्रेकेवंसी तरंगों को पैदा करके कई पक्षियों की बलि दे रहा है । मगर अच्छी बात ये रही कि अभी भी कुछ लोगो में इंसानियत बची है जिन्होंने इस कृतघ्न के खिलाफ होकर पक्षियों के प्रति अपने प्रेम को दिखाया है । आप भी आपके आस पास पक्षियों को मारने और क्षति पहचाने वाले का विरोध कीजिए । और जरूरत पड़ने पर वन्य जीव बचाव दल को संपर्क कर अपना दायित्व दे ।



  टाइफून , भवंडर या चक्रवात और ट्रॉपिकल स्टॉर्म : समुद्रीय सतह (surface) पर तीव्रता (intensity) से तापमान (temperature) की आवर्ती ( frequenc...

 टाइफून , भवंडर या चक्रवात और ट्रॉपिकल स्टॉर्म :


समुद्रीय सतह (surface) पर तीव्रता (intensity) से तापमान (temperature) की आवर्ती ( frequency) में आए परिवर्तन से उत्पन्न आकस्मिक तूफान या आंधी को टाइफून का नाम दिया गया है । इसे क्षेत्र और भाषा के अनुसार अलग - अलग नाम से पहचाना जाता है । ट्रॉपिकल स्टॉर्म , चक्रवात ,भवंडर एक ही परिस्थिति के पहलू है जो समूद्र में असंतुलन के कारण जन्म लेते है । 

  जब भी अंतरिक्ष की बात की जाती है तो सर्वप्रथम हमारे ध्येय में सौरमंडल के 8 गृह का विचार आता ही है । आए भी क्यों नही हमने इनके बारे में बचप...

 


जब भी अंतरिक्ष की बात की जाती है तो सर्वप्रथम हमारे ध्येय में सौरमंडल के 8 गृह का विचार आता ही है । आए भी क्यों नही हमने इनके बारे में बचपन से लेकर आज तक कुछ न कुछ जानते रहे है । मगर इनके बारे में जीतनी जानकारी मिले हमारे अंदर उतनी ही और उत्सुकता बड़ जाती है । हमने अभी तक सौरमंडल के गृह के बारे में जितनी जानकारी हासिल की है वो पूर्ण जानकारी नहीं है । इनमे से कुछ गृह ऐसे भी है जहा पर वैज्ञानिकों का पहुंचना भी असंभव है । अब आप समझ ही गए होंगे मैं किन गृहों की बात कर रहा हूं । इनको सौरमंडल के '  जुड़वा गृह 'और  ' बर्फीले गैस दानव ' आदि नामो से जाना जाता है । जी हां , आज हम बात करेंगे अरुण और वरुण गृहों के बारे में । यू तो इन गृहों के बारे में हमने काफी कुछ सुना हुआ है मगर इनकी यह जानकारी पर्याप्त नहीं है । समय - समय पर इनके रहस्यों से पर्दा उठता जाता है और हमे नई - नई बातो का खुलासा होता जाता हैं । 


अरुण ~ URANUS


हमारे सौरमंडल में सूर्य के इस आठ अनूठो के समूह में यह  सातवें नंबर का सदस्य है जिसे अंग्रेजी में यूरेनस कहते है । बाकी गृहों की तुलना में अरुण का तापमान बहुत ही कम है , सूर्य से दूर स्थिति के कारण ही इसका वातावरण इतना ठंडा है । अरुण का न्यूनतम तापमान  -49 Kelvin  केल्विन आका गया है जिसका °c में -244° सेंटीग्रेड होता है । इतने कम तापमान में किसी भी जीवाणु या विषाणु का सक्रिय रहना मुश्किल हो जाता है । पृथ्वी की तुलना में यह बहुत कम घना है जिस कारण से इसका घनत्व बहुत कम है क्योंकि अरुण पर गैसीय कणों की अधिकता पाई जाती है । अरुण गृह की खोज 13 मार्च 1781 में में एक खगोलशास्त्री विलियम हरशेल ने की थी । सौरमंडल में हमारी पृथ्वी से दूर होने के बावजूद इसे नंगी आंखो द्वारा भी देखा जा सकता है । हालाकि बिना दूरबीन से देखने पर यह एक तारे के समीप टिमटिमाता दिखाई देता है ।  यही कारण से प्राचीन समय में भी विद्वानों ने इसे टिमटिमाता बड़ा तारा ही समझते थे और इसको गृहों की सूची में शामिल नहीं करे थे ।  

अरुण से सम्बंधित जानकारी 

★ खोजकर्ता -   विलियम हरसोनेल [3 मार्च 1781]

★ उपनाम    -    युरानीयन

★ उपग्रह   -       27 

★ द्रव्यमान  -      8.681×10 ^ 25 किलोग्राम

★ परिक्रमण-      30,799 दिन / एक परिक्रमण सूर्य का 


सौरमंडल के चारो गृहों को गैसीय दानवों का दर्जा दिया गया है जिसमे से अरुण और वरुण दो मुख्य गृह माने जाते है । ये मिट्टी और पत्थर के न बने होकर गैसीय कणों के बने होते है और ये आकर में विशाल होने के कारण भद्दे दिखाई देते है जिस वजह से इनको दानव गृह कहा जाने लगा । इनकी वास्तविक सरंचना तो सीमित होती है मगर गैसीय आवरण या वलय काम ज्यादा होता रहता है । शनि और बृहस्पति की तुलना में अरुण और वरुण गृहों पर बर्फ की मात्रा काफी अधिक है साथ ही अमोनिया और मेथेन गैस की बर्फ भी मौजूद है । 


वरुण ~ NEPTUNE 


वरुण गृह जिसे अंग्रेजी में NEPTUNE PLANET भी कहा जाता है । सौरमंडल के आठ गृहों की श्रृंखला में सबसे आखरी गृह है वरुण , इसे सौरमंडल का सबसे ठंडा गृह भी कहा जाता है । एक ओसत तापमान भी इस गृह पर -214 °C होता है इसका तापमान स्थिर नहीं रहता है । 

वरुण ग्रह से सम्बंधित जानकारी 

★ खोजकर्ता - अर्बेन ले. वैरियर [23 सितम्बर 18]

★ उपनाम - नेप्टियन

★उपग्रह - 11

★ द्रव्यमान - 1.024× 10 वर्ग 26 किलोग्राम

★ परिक्रमण-   60,190 दिन और 3 घंटे 

पृथ्वी से कई प्रकाश वर्ष दूर स्थित होने के कारण इसे नंगी आंखो द्वारा देख पाना संभव नहीं है । इसकी सरंचना अरुण गृह से मिलती-जुलती है इसलिए दोनो में काफी समानताएं भी है । वरुण गृह सभी गृहों की तुलना में बहुत हल्का और कम घना है क्योंकि यह पूरी तरह गैसो से बना हुआ है और इसका यह आवरण हीलियम हाइड्रोजन और मैथन से ही निर्मित है । और मैथन गैस की अधिकता के चलते NEPTUNE PLANET गहरा नीले रंग का दिखाई देता है । इसका रंग समुद्र जैसा होने के कारण इसका नामकरण भी समुद्र के रोमन देवता के नाम पर हुआ है । सौरमंडल के आखरी क्षोर पर होने के कारण सूर्य का पैसिव फोर्स कम होता है इस पर इस वजह से यह बहुत तेज गति से घूमता है । इसकी तेज गति से घूमने के कारण वरुण गृह पर बहुत तेज हवाएं और ठंडे हवा के झोके चलते रहते है । वरुण गृह पर एक घना धब्बा है काले रंग जो हमारी पृथ्वी उतना बड़ा है जिसे  ' द ग्रेट डार्क स्पॉट ' ( The great dark spot ) नाम दिया गया है । जो अरुण गृह को और भी अन्य गृह से अलग  बना देता है । नेपच्यून गृह पर भी शनि गृह की तरह वलय ( Rings ) स्थित है मगर ये वलय इतने हल्के और बारीक है की इनको देख पाना मुश्किल होता है ।  ये वलय मुख्य रूप से  बर्फ के कणों  ( ice particle ) और कार्बन पदार्थ  ( carbon substances ) से निर्मित है । 



● स्टेच्यू ऑफ पीस ~ स्टैच्यू ऑफ पीस  श्री माननीय प्रधानमंत्री जी की अगवाही में राजस्थान पाली जिले के जैतपुरा नामक जगह पर  151 इंच की अष्ट धा...

स्टेच्यू ऑफ पीस ~

स्टैच्यू ऑफ पीस

 श्री माननीय प्रधानमंत्री जी की अगवाही में राजस्थान पाली जिले के जैतपुरा नामक जगह पर  151 इंच की अष्ट धातु से बनी है यह मूर्ति। इस मूर्ति की धरातल से 27 फीट ऊंचाई है और 1300 किलोग्राम का वजन लिए स्थित है । 16 नवंबर 2021 को श्री माननीय प्रधानमंत्री जी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इस भव्य मूर्ति का अनावरण किया था । हालाकि ये मूर्ति ' स्टेच्यू ऑफ यूनिटी ' से काफी मिलती जुलती दिखती है मगर ये स्टेच्यू ऑफ यूनिटी ' की तुलना में छोटी है । मगर इसकी बनावट और स्थिति को देख कर पर्यटकों के होश उड़ जाते है । और वर्तमान में ये मूर्ति खूब सुर्खियां बटोर रही है । 


किसकी याद में बनाई गई है  ? 

Statue Of Peace शांति की मिसाल है और हर भारतीय को गर्व करना चाहिए इस अद्भुत स्मारक को देख कर ।

जैन आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर महाराज की 151 वी जयंती पर उनकी याद में इस भव्य मूर्ति का निर्माण किया गया है । आचार्य वल्लभ महाराज जी ने अपने आजीवन कई सारे समाज हितकारी कार्य किए है जिसकी बदौलत आज अनेक संस्थान संचालित है ।


आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर महाराज ~

आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर महाराज

आचार्य जी का जन्म गुजरात के बड़ौदा शहर में 1870 ईसवी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । इन्होंने भगवान महावीर के  मार्ग पर सादगीपूर्ण और निस्वार्थ भाव से अपना पूरा समर्थन दिया और समाज में जागरूकता का संचार किया । उन्होंने समाज में शांति और श्रीष्टाचार से लोगो को सही मार्गदर्शन दिया । इन्होंने समय आने पर  कई आंदोलन भी किए , जिसमे से उनका  ' स्वदेशी आंदोलन ' मुख्य भूमिका में रहा है । उन्होंने समाजिक बुराइयों को खत्म किया मगर उनका सबसे ज्यादा जोर शिक्षा पर रहा है । 

 ● कृतियां : उन्होंने कई गीत , निबंध , कविता और भक्तिपूर्ण भजन भी लिखे जो आज भी संग्रहित करके रखे हुए है । 

उनकी प्रेरणा से आज कई राज्यों में स्कूल , महाविद्यालय और 50 से भी ज्यादा अध्ययन केंद्र संचालित है ।  इस तरह के  महान विद्वान और नमनीय हस्थी के स्मरण में  स्टेच्यू ऑफ पीस   बनाया जाना निश्चित था । 

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी


भारत में अनेक  इनकी तरह शुरवीरो ने इस मिट्टी के लिए अपना बलिदान दिया है । मगर इतिहास के काले पन्नो में इनकी पहचान छुपी रह गई है और वर्तमान में उनके परिवार की दशा कोई पूछने वाला नहीं है । इस तरह की भूल समाज में निंदनीय का विषय बन जाते है । इनकी प्रतिमा तो नही बना सकते तो इनकी श्रद्धांजलि तो मनाई जानी चाहिए जिससे लोगो को इनके महत्य साहस के बारे में पता चले । इस तरह लोगो में एक प्रेरणा आयेगी जो की समाज में एक बेहतर पहल की नीव डालती है । अगर आपके आस-पास भी कुछ इस तरह के भूले - भीसरे शहीद है तो उनके बारे में जानकारी एकत्रित करके उनका जीवन - परिचय लिखिए और सोशल मीडिया के द्वारा लोगो तक पहचाए । समाज को मार्गदर्शन दिखाने वाले को समाज कभी नही भूलना चाहिए , लोग उनके आदर्शो को भूल रहे है । जब तक हम खुदमे वो बदलाव नहीं लाएंगे समाज में कोई बदलाव नहीं आएगा । 

  आपने कभी किसी गाँव या शहर के दो नाम सुने है ? सुने है ना , मगर आज हम ऐसे अनोखे शहर के बारे में बात कर रहे है जिसके तीन नाम है । सुनने में ...

 


आपने कभी किसी गाँव या शहर के दो नाम सुने है ? सुने है ना , मगर आज हम ऐसे अनोखे शहर के बारे में बात कर रहे है जिसके तीन नाम है । सुनने में बहुत अजीब लग रहा है न जब मैंने भी पहली बार इस शहर के बारे में सुना था तब मेरी भी यही दशा थी । भारत को अजूबों का देश कहा जाता है और मैं इस बात से पूर्ण सहमत हूं । क्योंकि आज हम भारत के झारखंड के एक ऐसे ही शहर की बात कर रहे है जो अपने तीन अलग - अलग नामो से जाना जाता है । आपने जमशेदपुर का नाम तो सुना ही होंगा , हाँ वही जमशेदपुर जहा पर भारत के मार्वल उद्योगपति रतन टाटा जी की स्टील फैक्ट्रीया स्थित है । यहां पर लौह-इस्पात की देश मे पहली फैक्ट्री बनाई गई थी ।  जब आप जमशेदपुर शहर घूमने के लिए जाओंगे तो आपको पता चलेगा कि इस नाम का स्टेशन वहा है ही नही । आप जिस रेल्वे स्टेशन पर उतरोगे उसका नाम ' टाटानगर ' होंगा । पड़ गए न आश्चर्य में ? मगर आप जैसे ही स्टेशन से निकलकर ऑटो पकड़ कर शहर के अंदर जाएंगे तो अपने आपको जमशेदपुर में पाएंगे । 

टाटा नगर रेलवे-स्टेशन

असल मे इस स्टेशन का नाम स्टील फैक्ट्री की प्रसिद्धि में टाटानगर पड़ गया है । उससे पहले जमशेदपुर का नाम साकची हुआ करता था । ये बात है सन 1907 में जब जमशेदजी नोशैरवानजी टाटा जी ने देश मे पहला स्टील प्लांट स्थापित किया था । तब से 150 परिवारों के इस छोटे गांव का नाम साकची से बदलकर ' जमशेदपुर 'रख दिया गया । इस टाटा स्टील के प्लांट के बनने से देश अब आत्मनिर्भर लौह - इस्पात उत्पादक देश बन गया था इसके अलावा भारत अन्य देशों में स्टील का निर्यात भी करने लगा था । इस उपलब्धि से देश की आर्थिक व्यवस्था में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई और देखते -देखते जमशेदपुर वीश्व प्रसिद्ध हो गया । फिर इसे भारत की रीढ़ की हड्डी माना जाने लगा और इसको ' मिनी इण्डिया ' के नाम की भी उपाधी प्राप्त हो गई है ।

टाटा स्टील प्लांट

इसके अलावा इस शहर की  खूबसूरती बिमिसाल है जो पर्यटकों को आकर्षित कर लेती है । यहां पर सभी धर्मों की मान्यता रखी गई है , सभी तरह के मंदिर , गिरजाघर , गुरुद्वारा ,  फादर टेम्पल , मस्जिद आदि उपस्थित है । यहाँ हिन्दू , सिख , इस्लामी , जैनी , क्रिस्चियन सभी बिना भेदभावक किये भाइचारे के साथ रहते हैं । इसी तरह की धर्मो के अद्भुत संगम स्थली शायद ही कही पर मौजूद होंगी । इसके अलावा इस शहर में तीन  बाजार भी लगते है जिनमे सबसे बड़ा बाजार साकची का बाजार होता है जहाँ पर दुनिया भर की बेशकीमती और बहुमुल्य वस्तुए मिलती हैं । बिष्टुपुर का बाजार में साधरण पहनावे और खाने - पीने की चीजें मिलती है जिनका मूल्य दूसरे बाजार की तुलना में थोड़ा ऊचा  होता है क्योंकि यहाँ रईसों का आव - जाव बना रहता है । इतना सब देखने के बाद जमशेदपुर की फेमस फालूदा कुल्फी के स्वाद से इस शहर की मिठास और  भी बढ़ जाती है । 

मशहूर बाजार

जूलोजिकल पार्क , डालमा वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी , जुबली पार्क , जयंती सरोवर , टाटा स्टील प्लांट , सूर्य मंदिर इस शहर के मुख्य आकर्षण बिंदु है जिनकी मनमोहकता देख नजरे नही हटती है । वाकई में यह शहर अद्भुत है जिस कारण लोग इसके तारीफों के पुल बांधते नही थकते है । इसके तीन नाम होना भी यही दर्शाता है कि इस शहर को जीतने नाम दे उतने काम है । 

शहर के मुख्य आकर्षण स्थल -

जुबली पार्क
जमशेदपुर का मशहूर जुबली पार्क अपने गुम्बज और इसकी खूबसूरत भरे दृश्यों के कारण काफी प्रचलित है । इसका निर्माण टाटा स्टील द्वारा ही किया गया है । सन 1937 में श्री एस . लेक्स्टर की मौजूदगी में इसका खूबसूरत डिज़ाइन तैयार किया गया था । यह पूरा पार्क 500 एकड़ के क्षेत्रफ़ल में फैला हुआ है और हर वर्ष 3 मार्च को यहाँ  भव्य उत्सत्व का आयोजन किया जाता है जिसको देखने के लिए भारी मात्रा में विदेश से भी पर्यटक आते है । 

सूर्य मंदिर
सूर्य मंदिर का स्वामी विधायक सरयू राय है , इस मंदिर के पृष्ठ में 5 घोड़ो का रथ है जो इस मंदिर की सौन्दर्यता बढ़ाता है । यह मंदिर गोलचक्कर बस स्टैंड से 3 से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ पहँचने के लिए लगभग 10 से 15 मिनट का समय लगता है । 

जे. आर. डी. स्पोर्ट स्टेडियम
जे. आर. डी. यानी जहाँगीर रतन दादा जी ने इस स्पोर्ट स्टेडियम का निर्माण करवाया है । इस स्टेडियम का उद्घाटन 1991 इसके स्वामी टाटा जी के मौजूदगी में किया गया था उस समय इसको बनाने की लागत  40 करोड़ रूपया थी । 

जयंती सरोवर
इस सरोवर को बेहद की खूबसूरत ढंग से सजाया गया है और इस पर अय्याशी की सारी सुविधाएं उपलब्ध है । जयंती सरोवर जमशेदपुर के नजदीक ही उपस्थित है जहाँ खासकर बोटिंग की जाती है । इसके अलावा इस तालाब पर आइलैंड भी बनाया गया जिस पर हॉलिडे मनाने लोग आते रहते है । यह सरोवर लगभग 40 एकड़ के बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है ।

डिमना लेक
जमशेदपुर से 13 किलो मीटर की दूरी तय करने के पश्चात डिमना झील जिसे स्वर्ग कहना गलत नही होंगा मौजूद है । यह वन्य जीव अभ्यारण के नजदीक में ही उपस्थित । जिस पर नवंबर से फरवरी के बीच घूमने के उत्तम समय माना जाता हैं । 
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● वीश्व विख्यात टाइटैनिक  19 वी शताब्दी में टाइटैनिक पूरे वीश्व का सबसे विशाल और प्रसिद्ध जल जहाज माना जाता था । उस समय इसकी इस वीश्व प्रसिद...

वीश्व विख्यात टाइटैनिक 


19वी शताब्दी में टाइटैनिक पूरे वीश्व का सबसे विशाल और प्रसिद्ध जल जहाज माना जाता था । उस समय इसकी इस वीश्व प्रसिद्धि इसकी अद्धभुत विशेषताओं से थी । सर्वप्रथम  इस जहाज को  ' द अनसिंकबल ' ( जो कभी डूब नहीं सकता ) की संज्ञा दी गई थी । इस जहाज पर कुल 3549 यात्री एक साथ यात्रा कर सकते थे और 64 लाइफ सपोर्ट बॉट रखने की व्यवस्था थी जो उस समय मे अपने आप मे एक बड़ी उपलब्धि थी । इस जहाज का आधिकारिक नाम - रॉयल मेल स्टीमर ( Royal Mail Steamer ) था । जिसका मतलब होता था भाप पर चलने वाले पात्र और उस समय इस नाम के 200 जहाजो का यही नाम दिया गया था जो मेल का सवंहन करते थे । रॉयल मेल स्टीमर RMS जिसका संशिप्त नाम है उस समय पत्र वाहन का कार्य करते थे । और टाइटैनिक भी उसी उदेश्य से बनाया गया उस समय का सबसे विशाल जहाज था टाइटैनिक का अर्थ भी ' Giant  या विशाल ' होता है । टाइटैनिक पर कुल 3500 पत्र , लिफ़ाफ़े और कागजात भेजे जाते थे । अगर आपने पिक्चर में टाइटैनिक की छवी देखी होंगी तो आपने गौर किया होंगा इसके ऊपर चार चिमनिया होती है । कहा जाता है इनमे से केवल तीन ही चिमनिया काम करती थी चौथी चिमनी जहाज की शोभा बढ़ाने के लिए लगाई गई थी ।

उस समय टाइटैनिक को बनाने की कुल लागत 7 करोड़ 50 लाख डॉलर थी जो आज की तारीख में 20 करोड़ डॉलर के बराबर आकि जाती है । इस विशाल जहाज के मुख्य लंगर को ऊपर उठाने के लिए लगभग 20 घोड़ो की आवश्यकता पड़ती थी उस वक्त जिसका वजन 16 टन अर्थात 16 हजार किलोग्राम होता है 


● टाइटैनिक से जुड़ी जानकारियां -



★ निर्माता -       हरलैंड और वोल्फ 

★ कप्तान -       कैप. एडवर्ड जे स्मिथ 

★ मालिक -       जे . ब्रूस स्मेय 

★ प्रमोचन -       31 मई 1911 , 31 मार्च 1912 ( सम्पूर्ण ) 

★ लंबाई -         882 फ़ीट 

★ उचाई -         53.3 मीटर 

★ स्थान -          इंग्लैण्ड 



 ● कैसे डूबा टाइटैनिक जहाज 


सन 1912 को 10 अप्रैल की सुबह को टाइटैनिक जहाज 2,223 यात्रियों को लेकर आयरलैंड के बेलफ़ास्ट से रवाना हुआ था ।  RMS के लांच को देखने के लिए फेल्फास्ट की जनता में होड़ मच गई थी , लगभग एक लाख लोग उपस्थित थे उस दौरान । टाइटैनिक न्यूयॉर्क शहर की यात्रा में अपने 4 दिन का सफर तय करने के बाद 14 अप्रैल को रात के 2 बजकर 20 मिनट पर एक हिमखण्ड ( Iceberg ) से टकराकर समुद्र में जलसमाधि ले ली थी । इस घटना का प्रकाशन एक अंग्रेजी अखबार ' द लंदन मेल ( The London Mail ) ' में हुआ था जिसका शीर्षक  ' Titanic Sunk , No Lives Lost ' था । उस वक्त ये त्रासदी उस समय तक कि सबसे विचित्र और बड़ी समुद्रीय घटना थी । इस खबर ने लोगो मे अशांति और खल बलि मचा दी थी । पूरा वीश्व इस कभी न डूबने वाले जहाज का इस तरह डूब जाना हजम नही हो रहा था । हालांकि कुल 706 यात्रियों को सकुशल बचा लिया गया था मगर लोगो ने सवाल उठाने शुरू कर दिए थे । जहाज के डूब जाने का मुख्य कारण तो टाइटैनिक की तेज रफ़्तार बताई गई मगर इसके अलावा भी कई पहलू थे जिनको लोगो से छुपाकर रखे गए । जहाज के डूबने के वक्त समुद्र के पानी का तापमान -4℃ था जो एक बर्फ जमने के तापमान से दो गुना अधिक था । 


फिर 18 नवंबर 1997 को जेम्स कैमरॉन  निर्देशन में बनी  फ़िल्म " टाइटैनिक " सिनेमाघरों में आई । हैरानी की बात थी इस मूवी को प्रोड्यूस भी जेम्स कैमरॉन ने किया और 200 मिलियन डॉलर की बड़े बजट में बनाई गई थी । और फ़िल्म ने सिनेमाघरो में गोल्डन जुबली खेली भी और उस वक्त फ़िल्म इतिहास के सारे रिकॉर्ड तोड़ कर 2.2 अरब डॉलर की कमाई की थी । इस मूवी ने लोगो को काफी प्रभावित किया और इसके डूबने के कारण को स्पष्ट किया । जेम्स कैमरॉन ने फ़िल्म में उपयोग होने वाले अभिनेत्री ' कैट विंस्लेट ' की स्केटचेस खुद बनाई थी । 


षड्यंत्र या संयोग ?  


तमाम पहलुओं और अवलोकन के खोजबीन करने के बाद इस पूरी घटना को एक आक्समिक दुर्घटना का नाम दे दिया गया । मगर इस तथ्य से कुछ लोगो ने आपत्ति जताई और इस पूरी घटना को एक योजना के तहत रची साजिश बताया मगर कुछ संस्थाओ और इंग्लैंड की सरकार ने इन बातों को बेबुनियाद कह कर अपने पैरों के तले दबा दिया । त्रासदी के 70 साल से अधिक के समय के बाद एक रोबोट सबमरीन की सहायता से इसके अवशेषों को ढूंढ लिया गया । RMS के अवशेषों को समुद्र की 8.5 मिल की गहराई में ढूंढ़ा गया था ।  टाइटैनिक जिस हिमखण्ड से टकराया था वो धरातल से 100 फ़ीट ऊँचा और 200 से 300 फ़ीट गहरा था और हैरानी की बात ये है कि इस हिमखण्ड का जहाज के आगे खड़े होने की भनक कैप्टेन को महज 37 सेकण्ड्स पहले ही हुई थी । और टाइटैनिक पर कुल 64 लाइफ सपोर्ट बॉट रखी जा सकती थी तो दुर्घटना के समय केवल 19 ही बॉट उपलब्ध थे । जिस वक्त जहाज डूब रहा था उस समय तापमान -4℃ हो गया था ऐसी स्थिति में किसी भी साधारण मनुष्य का 20 मिनट से अधिक जीवित रहना असंभव है । जेम्स कैमरॉन द्वारा बनाई गई फ़िल्म की कमाई से टाइटैनिक जैसे 11 जहाज बनाये जा सकते थे अब आप समझ सकते है मेरा इशारा क्या है । 


सबसे बड़ा इत्तेफाक और सयोंग तो तब होता है जब ये पता चलता है कि टाइटैनिक के डूबने के ठीक 14 वर्ष पहले एक उपन्यास प्रकशित हुआ था जिसका शीर्षक था " द रैक ऑफ टाइटन ओर फ़्यूटीलिटी " जिसके लेखक थे ' मॉर्गन रॉबर्टसन '। जो उस उपन्यास में घटित होता है वैसा ही टाइटैनिक के साथ भी हुआ काफी समानताये थी दोनो में । ऐसा लगता है जैसे उपन्यास की स्क्रिप्ट के आधार पर यह सारा षड्यंत्र रचा जा रहा था । उपन्यास की कथा में भी टाइटन नामक जहाज की टक्कर एक हिमखण्ड से होती है ताजुब की बात तो ये की टाइटैनिक जिस उत्तरी अटलांटिक समुद्र से न्यूफॉउंडलैंड से ठीक 400 नॉटिकल मिल दूर हिमखण्ड से टकराया था यह कथा वाला ही हिमखण्ड था , जिसकी पुष्टि बादमे कर दी गई है । RMS की गति 22.5 नॉटिकल मिल थी वही टाइटन की 25 नॉटिकल मिल थी । टाइटैनिक में 2,223 यात्री सफर कर रहे थे और टाइटन में 2200 यात्री  और ये दोनों जहाज ब्रिटैन के ही थे । दोनो में जहाज डूबने के समय आधी रात का था और लाइफ सपोर्ट बॉट का अभाव था । टाइटन पर 25 लाइफ सुपोर्ट बॉट मौजूद थे तो टाइटैनिक पर 19 बॉट थे । इतनी सारी समानतायें सयोंग से तो नही हो रही थी कुछ न कुछ तो रहस्य था । टाइटैनिक , टाइटन और इसके सदस्यो के बीच कोई कनेक्शन था जिसका पता सबको था मगर कोई बयान ना कर सका । 


इस बात को जिसने भी लोगो तक पहचानी चाही वो किसी न किसी दबाव में पीछे हट गया । लोगो को अब भी यह एक घटना ही लगती है मगर आज भी कई खोजकर्ताओं में मतभेद है टाइटैनिक को लेकर । कुछ बचे यात्रियों का कहना था कि टाइटैनिक पर जहाज डूबने के 3 दिन पहले ही आग लगी हुई थी जिसकी खबर कैप्टेन और कुछ सदस्यों को पहले से थी । इस रहस्यमय जहाज के अवशेष को आज भी समुद्र में से नही निकाला गया है , इसके पीछे का काला सच आज तक किसी को पता नही चल पाया । 

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  वर्तमान में पूरा विश्व आधुनिक और डिजिटल हो रहा है और उन्नत तकनीकी का इस्तेमाल कर रहा है । आज का युग इंटरनेट का युग है जहा हर काम नेटवर्क क...

 


वर्तमान में पूरा विश्व आधुनिक और डिजिटल हो रहा है और उन्नत तकनीकी का इस्तेमाल कर रहा है । आज का युग इंटरनेट का युग है जहा हर काम नेटवर्क के जरिए कुछ ही सेकंड्स या मिनट में हो जाता है । कंप्यूटर और संचार सुविधा के आ जाने से हमारे बहुत सारे काम आसान और बेहतर हो गए है । हर देश के नागरिक को पूरी स्वाधिनता है की वो इन सुविधाओ का लाभ ले सके । कुछ लोग इस सुविधाओ का इस्तेमाल अच्छे काम के लिए करता है तो कोई बुराई के लिए करता हैं । हर मनुष्य के इसे इस्तेमाल करने के अपने अपने अलग मकसद होते है । ऐसे में बात आती है सुरक्षा की , सुरक्षा उन लोगो से जो अपने स्वार्थ और दुसरो हो क्षति पहचाने के मकसद से इस तकनीक का प्रयोग करते है । चाहे वो बैंक से सम्बंधित लेन - देन हो या अन्य डॉक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन से रिलेटेड हो सुरक्षा की बात आ ही जाती है । और इसको पर्सनलाइजेशन बनाने के लिए OTP सर्विस  लागू कर दी गई है । आज हम इस ओटीपी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातो के बारे में डिस्कस करेंगे । 


 ● OTP क्या होता है ? 

ओटीपी One Time Password का शॉर्ट फॉर्म है जिसका अर्थ होता है  ' केवल एक समय के लिए कोड ' । यह 4 से 8 अंको या अक्षरों का ऑटो जेनरेट सुरक्षा कोड होता है जो हमे मैसेज या ईमेल द्वारा प्राप्त होता है । यह हमे एक बार मिलता है जिसे हमे वेरिफाई करना होता है । एक निश्चित रिक्वेस्ट्स करने से हमे हर बार यूनिक कोड प्राप्त होता है जो पहले वाले कोड से अलग होता है । इसलिए इसे सिक्युरिटी कोड  (Security Code ) भी कहा जाता है । प्रेजेंट टाइम में हम Google , Binge या Yahoo पर जिस भी साइट को लॉगिन करते है तो हमे फर्स्ट टाइम एकाउंट क्रिएट करना पड़ता है और उसके लिए मोबाइल नंबर और ईमेल वेरिफाई करने के लिए OTP फिलअप करना अनिवार्य  होता है । 



 ● OTP की जरूरत क्यों पड़ती है ? 

हम ये तो जान गए है की OTP होता क्या है मगर इसका इस्तेमाल क्यों होता है ? और इसकी जरूरत क्यों पड़ती है ? 

दोस्तों आजकल टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो चुकी है की मोबाइल में घर बैठे-बैठे लाखो रुपयों का ट्रांजेक्शन चुटकी में हो जाता है । अगर किसी संस्था में रजिस्ट्रेशन करवाना है वो भी मोबाइल से हो जाता है । ये सब काम में जोखिम कितना है ? ये सब यूजर आईडी और पासवर्ड के जरिए होता हैं मगर ये दो चीज किसी ने पता कर लिए तो ? ये बात आपको पता है मगर इन्टरनेट को थोड़ी पता रहेगा । इसी कड़ी मे इंटरनेट का नया फीचर हैं OTP । अगर यूजर नाम और पासवर्ड किसी को पता भी चल गया तो उसको सत्यापन के लिए यूजर के मोबाइल पर आए OTP को वेरिफाई करना पड़ेगा । आजकल ciber crime और hacking जेसी सामाजिक असुविधा बढ़ती ही जा रही हैं और ऐसे में आम आदमी को कोई नुकसान नहीं झेलना पड़े इसलिए OTP इंटरनेट की दुनिया में एहम और महत्त्वपूर्न पहल है ।



नई - नई तकनीक और बढ़ते साइबर क्राइम की दुनिया को देखते हुए तो यही लगता है आज हम जिस आजादी से इंटरनेट का प्रयोग कर रहें है । भविष्य में इन्टरनेट उसे करने क्रिया भी एक सीमा निर्धारित कर दी जाएंगी और रिस्ट्रिक्शंस बड़ा दी जाएंगी । फ्यूचर मे दुनिया फास्ट और एडवांस जरूर हो जाएंगी मगर HACKING और CIBER CRIME का आतम होना तय है । तब Banking Services उतनी सेफ नहीं रहेगी जितनी आज है । इसलिए तो बैंक और इंटरनेट हमे बार - बार सचेत करता है और अवेयर रहने और OTP , Pin, Password , username और पर्सनल इनफॉर्मेशन शेयर न करने के लिए आगाह करते रहते है । 


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  मानव सभ्यता निरंतर विकसित और सक्षम होती जा रही है , आज मानव ने कई बेमिसाल अविष्कार कर दिखाए है और कई रहस्यों से पर्दा उठा दिया है। विकास क...

 


मानव सभ्यता निरंतर विकसित और सक्षम होती जा रही है , आज मानव ने कई बेमिसाल अविष्कार कर दिखाए है और कई रहस्यों से पर्दा उठा दिया है। विकास की इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने पेड़ - पौधो की दुनिया से कई जानकारियां प्राप्त की है । वैज्ञानिकों ने पेड़ - पौधो पर अवलोकन किए और कई निरक्षण की बदौलत आज हम पेड़ - पौधो के जगत से इतने वाकिफ है । मुनष्य ने इनसे ओषधियां , खाद्य पदार्थ , निवास , वस्त्र - वसन और हमारी दैनिक जीवन में उपयोगी अनेक सुविधाओ का प्राप्त किया है । पूरे विश्व में पांच हजार करोड़ से अधिक पादप प्रजातियां पाई जाती है जिनमे से हम 15 % प्रजातियों से ही परिचित है । अब आप अंदाजा लगा सकते है की इस विशाल पादप जगत को हम कितना जानते है और कितना जानना अभी शेष है । आज की चिकत्सा क्षेत्र में इन पेड़ - पौधो ने जमकर अपनी सहभागिता दी है जिसकी बदौलत हमारी चिकत्सा सुविधा इतनी सफल और कारगर सिद्ध हुई है । हम जिन ओंषधियो को बड़ी रकम देकर प्रांत करते है वो हमारे प्रकृति में मुफ्त उपलब्ध है । हमारे पास पेड़ - पौधो की उपलब्धता है मगर उसके सही ज्ञान का अभाव है । प्राचीन समय में वैद्य थे आज चिक्तसक  है उपचार नहीं बदला बस उपचार करने का तरीका बदल गया है । आज भी कई औषधीय - जानकार कई रोगों का उपचार आयुर्वेदिक तरीके से कर लेते है । हमारे पूर्वजों ने भी कई पेड़ - पौधो से कई बीमारियों का समाधान बताए है मगर आधुनिकता के प्रभाव में कही न कही हम पुराने तौर - तरीकों को भूलते जा रहे है । आज हम इसी प्रकार के कुछ पारंपरिक पेड़ - पौधो को जानेंगे जिनकी उपयोगिता धीरे - धीरे कम होती जा रही है । 

कुछ अंजान कुछ जाने पहचाने पेड़ - पौधे -


 ● सूरन : Amorphophallus 


वर्गीकरण ( classification ) ~ सूरन को भारत में इन कुछ प्रचलित नामों से पहचाना जाता हैं । जमीनकंद , डंडा , कुन्दा , दाना ( डूडा ) इत्यादि । सूरन प्लांटी जगत के अरेसी ( araceae ) कुल  का पौधा है । 


डूडा


उत्पत्ति ( Origin ) ~ अफ्रीका के पश्चिमी भाग में इसका जन्म हुआ मगर इसकी पूर्णतः खोज सयंक्त राज्य अमेरिका में हुई । वर्तमान में इसका वितरण एशिया , ऑस्ट्रेलिया और विभिन्न समद्रिय द्वीपों पर देखा जा सकता है । 



उपयोग ( Uses ) ~ सूरन जहरीले पेड़ - पौधो की गिनती में आता है । इसके कंद ( corm ) में टॉक्सिक एसिड की प्रचुरता होती है । इसको सेवन के लिए तैयार करने के से पहले इसमें उपस्थित जहरीले रसायनों को सावधानी पूर्वक निकालना पड़ता है अन्यथा इसके साइड इफेक्ट बहुत घातक भी हो जाते है । इसके कंदो ( corms ) में कैल्शियम ऑक्सिलेट क्रिस्टल पाया जाता है यही कारण से इसका सेवन करना लोग पसंद करते है । कई बार जानवर इनको चारे के साथ धोखे से खा लेते है जिस वजह से गले में सूजन आजाती है और अन्य पाचन समस्याएं उत्पन्न हो जाती है । इसकी ऊंचाई एक सामान्य पौधे की तुलना में अधिक होती है । 


 ● प्याजी : Indian Squill 

प्याजी

वर्गीकरण ( classification ) ~ जंगली प्याजी या प्याजी को मुख्यतः खरपतवारो की श्रेणी में रखा जाता है । प्लांटि जगत का ये पौधा सोलेनसी (solanaceae) कुल के अंतर्गत आता है । जिसे प्याज का जंगली रूपांतरण कहा जाता है , यह एक कंदीय पोधा है  ।



उत्पत्ति ( Origin ) ~ इसका जन्म सर्वप्रथम मिस्र ( Egypt ) देश में हुआ था । यह खरपतवार गेंहू और मटर की प्रजातियों के फसलों में उगता है । प्याजी का कंद ( bulb ) एक प्याज के कंद की तुलना में छोटा होता है । यह दिखने में हुबहू प्याज के समान दिखाई देता है मगर अम्लो की अधिकता के कारण इसका स्वाद तेज होता है । 


उपयोग ( Uses ) ~ प्याजी को मुख्यतः खाद्य पदार्थ के रूप में सेवन किया जाता है । इसके कंदो को सावधानी से साफ कर गर्म पानी में उबाला जाता है फिर उसकी सब्जी बनाई जाती है ।इसकी शाखाओं को भी इसी तरह साफ कर रसायनों को हटाकर भाजी बनाकर खाया जाता है । इसकी पत्तियों के रस में तरलीय पदार्थ बहुत तेज खुजलन पैदा करता है । प्याजी के पर्याप्त सेवन से पेट में अम्ल और क्षार के अनुपात को संतुलित रखती है । प्याजी की ओसतन ऊंचाई 15 से 30 सेमी तक होती है और चौड़ाई 25 से 35 सेमी तक पाई जाती है ।


 ● चकुंदा : Senna Obtusifolia 


वर्गीकरण ( classification ) ~ Senna Obtusifolia  भारत में पनवार , चकवात और पुवाड़ के नाम से प्रचलित है । चकुंदा प्लांटी जगत का फेबियासी ( fabaceae ) कुल और सेन्ना वंश का पौधा है । 


उत्पत्ति ( Origin ) ~ इस पौधे की उत्पत्ति चीन ( china ) से मानी जाती है । कहा जाता है सर्वप्रथम इसके बीजों का इस्तेमाल चीन के लोगो ने प्याले के तौर किया करते थे । और यही वो दौर  था जहा से चाय पीने की प्रथा भी प्रारंभ हो गई । चाय का अविष्कार भी चीन में ही हुआ मगर बादमें ये चाय भारत की परंपरा बन गई । चकुंदा के बीजों के प्याले की प्रथा आज भी भारत के कुछ गिने चुने गावों में कायम है । 




उपयोग ( Uses ) ~ यह पौधा 1.5 मीटर से 2.5 मीटर तक की ऊंचाई में पाया जाता है । चकुंदा के बीजों में प्रचुर मात्रा में विटामिन्स पाए जाते है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ा देते है । विटामिन " ए " की अधिकता होने की वजह से आंखों की देखभाल और घुटनो के दर्द में रामबन सिद्ध होता है । चकुंदा की आज भी मार्केट में कई सारी मेडिसिन उपलब्ध है । इनके पीले फूलों का काढ़ा भी बनाया जाता है जो पाचन क्रिया को सुचारू बनाए रखने में सहायक होता  है ।



 ● कमचत्का लीली : Fritillaria Comschatcenssis 


वर्गीकरण ( classification ) ~ कमचटका या कमचत्का लीली प्लांटी जगत का लिलेयसी ( liliaceae ) कुल और फ्रिटिलारिया वंश का पादप है ।


उत्पत्ति ( Origin ) ~ लीली को सर्वप्रथम दक्षिण अमेरिका में खोजा गया था । लीली का एक समय में वितरण सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप में हुआ करता था । मगर वर्तमान इसके फैलाव और उत्पादन में गिरावट आई है जिस वजह से इसका अभाव बढ़ता ही जा रहा है । जापान के कुछ क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इसकी कृषि की जाती है । 



उपयोग ( Uses ) ~ कमचत्का लीली का अधिकांश प्रयोग बागवानियो और उद्यानों में गृह-वाटिका ( kitchen gardening ) में किया जाता है । इसके अलावा लीली के फूलों से इत्र भी तैयार किया जाता है । इसका तना लचीला और मज़बूत होने की वजह से कुछ लोगो द्वारा इसकी रस्सिया भी तैयार की जाती है ।  इसके पत्तियों का उगने का ढंग इतने बेहतरीन होता है की इसकी सुंदरता देखने लायक होती है । यह पौधा भी दूसरे पौधो की तुलना में ऊंचा और पतला होता है । 


 ● राजाक : Humulus Japanese Hop. 


वर्गीकरण ( classification ) ~ हमुलुस बेलीय पौधा होता है जिसे आमतौर पर पेड़ों पर लटका हुआ देखा जा सकता है । यह प्लांटी जगत का कन्नाबियासी ( cannabaceae ) कुल का पौधा है । 

राजाक


उत्पत्ति ( Origin ) ~ राजक वंश के इस पौधे का पता सन् 1880 में सयंक्त राज्य अमेरिका लगाया गया था । इसकी कुछ प्रजातियों का आकार इतना बड़ा होता है वो 300 किलो ग्राम तक का वजन आराम से झेल लेते है । भारत के कुछ गिने चुने जगहों पर ही उगता है जिनमे मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के तटवर्ती पहाड़ मुख्य है । 


उपयोग ( Uses ) ~ इसका मुख्य रूप से एल्कोहलिक पदार्थ तैयार करने में प्रयोग किया जाता है । बीयर जेसी शराब में इसका प्रयोग संरक्षण करने और सुंगध बड़ाने के लिए किया जाता है । राजक के पौधे में दो प्रकार के फूल पाए जाते है नर और मादा । दोनो फूलों में काफी विभिंताएं पाई जाती है और नर फूलों की समय अवधि मादा फूलों की तुलना में अधिक होती है । इसकी अनुकूलता बरसात ऋतु से शुरू होकर शरद ऋतु में जाकर खत्म हो जाती है । इसके बीज एक लम्बे अरसे तक सक्रिय रह सकते है । राजक के औषधीय गुण का इस्तेमाल मानसिक तनाव जेसे विकार को दूर करने में किया जाता है । 


उम्मीद करते है आपको ये रिपोर्ट काफी लाभकारी रही होंगी इन तमाम पौधो की जानकारी कुछ किताबो और अनुभवी लोगो से ली गई है । लिस्ट में और भी पौधे थे मगर हमने कुछ ही की जानकारी दी है । आपको इनमे से कॉन - कॉन से पौधो के बारे में पहले से पता था या नहीं, आप कॉमेंट बॉक्स द्वारा अपने विचार हमसे साझा कर सकते है । 


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