AutorRTJD उपेक्षित पादप - Anmol guno vale plants - Incognita Island

  मानव सभ्यता निरंतर विकसित और सक्षम होती जा रही है , आज मानव ने कई बेमिसाल अविष्कार कर दिखाए है और कई रहस्यों से पर्दा उठा दिया है। विकास क...

उपेक्षित पादप - Anmol guno vale plants

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मानव सभ्यता निरंतर विकसित और सक्षम होती जा रही है , आज मानव ने कई बेमिसाल अविष्कार कर दिखाए है और कई रहस्यों से पर्दा उठा दिया है। विकास की इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने पेड़ - पौधो की दुनिया से कई जानकारियां प्राप्त की है । वैज्ञानिकों ने पेड़ - पौधो पर अवलोकन किए और कई निरक्षण की बदौलत आज हम पेड़ - पौधो के जगत से इतने वाकिफ है । मुनष्य ने इनसे ओषधियां , खाद्य पदार्थ , निवास , वस्त्र - वसन और हमारी दैनिक जीवन में उपयोगी अनेक सुविधाओ का प्राप्त किया है । पूरे विश्व में पांच हजार करोड़ से अधिक पादप प्रजातियां पाई जाती है जिनमे से हम 15 % प्रजातियों से ही परिचित है । अब आप अंदाजा लगा सकते है की इस विशाल पादप जगत को हम कितना जानते है और कितना जानना अभी शेष है । आज की चिकत्सा क्षेत्र में इन पेड़ - पौधो ने जमकर अपनी सहभागिता दी है जिसकी बदौलत हमारी चिकत्सा सुविधा इतनी सफल और कारगर सिद्ध हुई है । हम जिन ओंषधियो को बड़ी रकम देकर प्रांत करते है वो हमारे प्रकृति में मुफ्त उपलब्ध है । हमारे पास पेड़ - पौधो की उपलब्धता है मगर उसके सही ज्ञान का अभाव है । प्राचीन समय में वैद्य थे आज चिक्तसक  है उपचार नहीं बदला बस उपचार करने का तरीका बदल गया है । आज भी कई औषधीय - जानकार कई रोगों का उपचार आयुर्वेदिक तरीके से कर लेते है । हमारे पूर्वजों ने भी कई पेड़ - पौधो से कई बीमारियों का समाधान बताए है मगर आधुनिकता के प्रभाव में कही न कही हम पुराने तौर - तरीकों को भूलते जा रहे है । आज हम इसी प्रकार के कुछ पारंपरिक पेड़ - पौधो को जानेंगे जिनकी उपयोगिता धीरे - धीरे कम होती जा रही है । 

कुछ अंजान कुछ जाने पहचाने पेड़ - पौधे -


 ● सूरन : Amorphophallus 


वर्गीकरण ( classification ) ~ सूरन को भारत में इन कुछ प्रचलित नामों से पहचाना जाता हैं । जमीनकंद , डंडा , कुन्दा , दाना ( डूडा ) इत्यादि । सूरन प्लांटी जगत के अरेसी ( araceae ) कुल  का पौधा है । 


डूडा


उत्पत्ति ( Origin ) ~ अफ्रीका के पश्चिमी भाग में इसका जन्म हुआ मगर इसकी पूर्णतः खोज सयंक्त राज्य अमेरिका में हुई । वर्तमान में इसका वितरण एशिया , ऑस्ट्रेलिया और विभिन्न समद्रिय द्वीपों पर देखा जा सकता है । 



उपयोग ( Uses ) ~ सूरन जहरीले पेड़ - पौधो की गिनती में आता है । इसके कंद ( corm ) में टॉक्सिक एसिड की प्रचुरता होती है । इसको सेवन के लिए तैयार करने के से पहले इसमें उपस्थित जहरीले रसायनों को सावधानी पूर्वक निकालना पड़ता है अन्यथा इसके साइड इफेक्ट बहुत घातक भी हो जाते है । इसके कंदो ( corms ) में कैल्शियम ऑक्सिलेट क्रिस्टल पाया जाता है यही कारण से इसका सेवन करना लोग पसंद करते है । कई बार जानवर इनको चारे के साथ धोखे से खा लेते है जिस वजह से गले में सूजन आजाती है और अन्य पाचन समस्याएं उत्पन्न हो जाती है । इसकी ऊंचाई एक सामान्य पौधे की तुलना में अधिक होती है । 


 ● प्याजी : Indian Squill 

प्याजी

वर्गीकरण ( classification ) ~ जंगली प्याजी या प्याजी को मुख्यतः खरपतवारो की श्रेणी में रखा जाता है । प्लांटि जगत का ये पौधा सोलेनसी (solanaceae) कुल के अंतर्गत आता है । जिसे प्याज का जंगली रूपांतरण कहा जाता है , यह एक कंदीय पोधा है  ।



उत्पत्ति ( Origin ) ~ इसका जन्म सर्वप्रथम मिस्र ( Egypt ) देश में हुआ था । यह खरपतवार गेंहू और मटर की प्रजातियों के फसलों में उगता है । प्याजी का कंद ( bulb ) एक प्याज के कंद की तुलना में छोटा होता है । यह दिखने में हुबहू प्याज के समान दिखाई देता है मगर अम्लो की अधिकता के कारण इसका स्वाद तेज होता है । 


उपयोग ( Uses ) ~ प्याजी को मुख्यतः खाद्य पदार्थ के रूप में सेवन किया जाता है । इसके कंदो को सावधानी से साफ कर गर्म पानी में उबाला जाता है फिर उसकी सब्जी बनाई जाती है ।इसकी शाखाओं को भी इसी तरह साफ कर रसायनों को हटाकर भाजी बनाकर खाया जाता है । इसकी पत्तियों के रस में तरलीय पदार्थ बहुत तेज खुजलन पैदा करता है । प्याजी के पर्याप्त सेवन से पेट में अम्ल और क्षार के अनुपात को संतुलित रखती है । प्याजी की ओसतन ऊंचाई 15 से 30 सेमी तक होती है और चौड़ाई 25 से 35 सेमी तक पाई जाती है ।


 ● चकुंदा : Senna Obtusifolia 


वर्गीकरण ( classification ) ~ Senna Obtusifolia  भारत में पनवार , चकवात और पुवाड़ के नाम से प्रचलित है । चकुंदा प्लांटी जगत का फेबियासी ( fabaceae ) कुल और सेन्ना वंश का पौधा है । 


उत्पत्ति ( Origin ) ~ इस पौधे की उत्पत्ति चीन ( china ) से मानी जाती है । कहा जाता है सर्वप्रथम इसके बीजों का इस्तेमाल चीन के लोगो ने प्याले के तौर किया करते थे । और यही वो दौर  था जहा से चाय पीने की प्रथा भी प्रारंभ हो गई । चाय का अविष्कार भी चीन में ही हुआ मगर बादमें ये चाय भारत की परंपरा बन गई । चकुंदा के बीजों के प्याले की प्रथा आज भी भारत के कुछ गिने चुने गावों में कायम है । 




उपयोग ( Uses ) ~ यह पौधा 1.5 मीटर से 2.5 मीटर तक की ऊंचाई में पाया जाता है । चकुंदा के बीजों में प्रचुर मात्रा में विटामिन्स पाए जाते है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ा देते है । विटामिन " ए " की अधिकता होने की वजह से आंखों की देखभाल और घुटनो के दर्द में रामबन सिद्ध होता है । चकुंदा की आज भी मार्केट में कई सारी मेडिसिन उपलब्ध है । इनके पीले फूलों का काढ़ा भी बनाया जाता है जो पाचन क्रिया को सुचारू बनाए रखने में सहायक होता  है ।



 ● कमचत्का लीली : Fritillaria Comschatcenssis 


वर्गीकरण ( classification ) ~ कमचटका या कमचत्का लीली प्लांटी जगत का लिलेयसी ( liliaceae ) कुल और फ्रिटिलारिया वंश का पादप है ।


उत्पत्ति ( Origin ) ~ लीली को सर्वप्रथम दक्षिण अमेरिका में खोजा गया था । लीली का एक समय में वितरण सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप में हुआ करता था । मगर वर्तमान इसके फैलाव और उत्पादन में गिरावट आई है जिस वजह से इसका अभाव बढ़ता ही जा रहा है । जापान के कुछ क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इसकी कृषि की जाती है । 



उपयोग ( Uses ) ~ कमचत्का लीली का अधिकांश प्रयोग बागवानियो और उद्यानों में गृह-वाटिका ( kitchen gardening ) में किया जाता है । इसके अलावा लीली के फूलों से इत्र भी तैयार किया जाता है । इसका तना लचीला और मज़बूत होने की वजह से कुछ लोगो द्वारा इसकी रस्सिया भी तैयार की जाती है ।  इसके पत्तियों का उगने का ढंग इतने बेहतरीन होता है की इसकी सुंदरता देखने लायक होती है । यह पौधा भी दूसरे पौधो की तुलना में ऊंचा और पतला होता है । 


 ● राजाक : Humulus Japanese Hop. 


वर्गीकरण ( classification ) ~ हमुलुस बेलीय पौधा होता है जिसे आमतौर पर पेड़ों पर लटका हुआ देखा जा सकता है । यह प्लांटी जगत का कन्नाबियासी ( cannabaceae ) कुल का पौधा है । 

राजाक


उत्पत्ति ( Origin ) ~ राजक वंश के इस पौधे का पता सन् 1880 में सयंक्त राज्य अमेरिका लगाया गया था । इसकी कुछ प्रजातियों का आकार इतना बड़ा होता है वो 300 किलो ग्राम तक का वजन आराम से झेल लेते है । भारत के कुछ गिने चुने जगहों पर ही उगता है जिनमे मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के तटवर्ती पहाड़ मुख्य है । 


उपयोग ( Uses ) ~ इसका मुख्य रूप से एल्कोहलिक पदार्थ तैयार करने में प्रयोग किया जाता है । बीयर जेसी शराब में इसका प्रयोग संरक्षण करने और सुंगध बड़ाने के लिए किया जाता है । राजक के पौधे में दो प्रकार के फूल पाए जाते है नर और मादा । दोनो फूलों में काफी विभिंताएं पाई जाती है और नर फूलों की समय अवधि मादा फूलों की तुलना में अधिक होती है । इसकी अनुकूलता बरसात ऋतु से शुरू होकर शरद ऋतु में जाकर खत्म हो जाती है । इसके बीज एक लम्बे अरसे तक सक्रिय रह सकते है । राजक के औषधीय गुण का इस्तेमाल मानसिक तनाव जेसे विकार को दूर करने में किया जाता है । 


उम्मीद करते है आपको ये रिपोर्ट काफी लाभकारी रही होंगी इन तमाम पौधो की जानकारी कुछ किताबो और अनुभवी लोगो से ली गई है । लिस्ट में और भी पौधे थे मगर हमने कुछ ही की जानकारी दी है । आपको इनमे से कॉन - कॉन से पौधो के बारे में पहले से पता था या नहीं, आप कॉमेंट बॉक्स द्वारा अपने विचार हमसे साझा कर सकते है । 


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